मजदूर का मतलब हमेशा गरीब से नही होता है,मजदूर वह इकाई है, जो हर सफलता का अभिन्न अंग है,फिर वह चाहे ईट गारे में सना इन्सान को या आफिस की फाइल्स के बोझ तले दबा एक कर्मचारी। हर वह इन्सान जो किसी संस्था के लिए कार्य करता है और बदले में पैेसे लेता है,वह मजदूर कहलता है। चाहे वह ईट गारे का कार्य करता हुआ एक साधारण मजदूर हो,या एअर कंण्डीशन के आफिसो में बैठा बडा से बडा अधिकारी,सभी एक प्रकार से मजदूर के श्रेणी में ही आते है। हां यह अलग-बात है की मजदूरो की श्रेणी उच्च गुणवत्ता व निम्न गुणवत्ता का अलग-अलग हो सकता है। परन्तु यह अंत में सभी मजदूर ही कहलाते है। यदि आप समाजिक नजिरिये से गौर करे तो राजा-महराजा भी एक प्रकार का मजदूर की ही श्रेणी मे ही आता है। क्योकि उसे भी कार्य के बदले जनता से टैक्स के रूप में आय प्राप्त होता है। यदि देखा जाए तो मजदूर एक ऐसा शब्द है जिसके श्रेणी में लगभग सभी आ जाते है। हां यह अलग बात है कि छोटे मजदूर और बडे मजदूर में भेद भाव का होना सदियो पुरानी परम्परा है।
अन्र्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस को हम अन्र्तराष्ट्रीय कर्मचारी दिवस व मई दिवस कहते है। इसे पूरी दुनिया में अन्र्तराष्ट्रीय तौर पर मनाया जाता है। ताकि मजदूर एसोशिएशन को बढावा एवं प्रोत्साहन मिल सके। मजदूर दिवस 01 मई को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यूरोप में तो इसे पारंम्परिक तौर पर बसंत की छुट्टी घोषित किया गया है। दुनिया के लगभग 80 प्रतिशत देशो में इसी दिन को अन्र्तराष्ट्रीय छुट्टी दिवस के रूप में घोषित किया गया है। अमेरिका और कनाडा में मजदूर दिवस सितम्बर महीने के पहले सोमवार को होता है। भारत में हम इसे श्रमिक दिवस भी कहते है। मजदूर को मजबूर समझना हमारा सबसे बडी गलती है। वह अपने खून पसीने की कमाई खाता है। यह ऐसे स्वभिमानी लोग होते है,जो थेडे में भी हसीं खुशी का जिन्दगी व्यतीत करते है। तथा यह अपने मेहनत व लगन पर पूरी पिष्ठा के साथ विश्वास रखते है।
मजदूर दिवस का इतिहास
विश्व में मजदूर दिवस की उत्पत्ति
भारत में मजदूर दिवस समारोह
मजदूर दिवस का इतिहास
भारत में श्रमिक दिवस को कामकाजी आदमी व महिलाओ के सम्मान में मनाया जाता है। मजदूर दिवस को पहली बार भारत में मद्रस में 01 मई 1923 को मनाया गया था। इसकी शुरूआत लेबर किसान पार्टी आफ हिन्दुस्तान ने किया था। इस मौके पर पहली बार भारत में आजादी के पहले लाल झंडा का उपयोग किया गया था। इस पार्टी के लीडर सिंगारावेलु चेत्तिअर ने इस दिन को मनाने के लिए 02 जगह कार्यक्रम आयोजित किये थे। पहली मीटिंग के दौरान ट्रिपलीकेन बीव में व दूसरी मद्रस हाईकोर्ट के सामने वाले बीच में आयोजित किया गया था। सिंगारावेलु ने यहा भारत के सरकार के सामने निवेदन किया था की 01 मई को मजदूर दिवस घोषित किया जाए। साथ ही इसी दिन अन्र्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस भी घोषित किया जाए। उन्होने राजनीतिक पार्टियो को अहिंसावदी होने पर बल दिया था।
विश्व मजदूर दिवस की उत्पत्ति
01 मई 1986 में अमेरिका के सभी मजदूर संघ साथ मिलकर यह निश्चय किया करते थे कि वे 08 घंटो से ज्यादा कार्य नही करेगें। जिसके लिए वे हडताल कर लेते है,इस दौरान श्रमिक वर्ग से 10-16 घंटे काम करवाया जाता था। साथ ही उनकी सुरक्षा का ध्यान नही रखा जाता था। उस समय काम के दौरान मजदूरो को चोटे भी आती थी। कई लोग तो इस दौरान मौत के भी शिकर हो जाते थे,काम के दौरान बच्चे महिलाए व पुरूषो का अनुपात बढता ही जा रहा था। जिस वजह से यह जरूरी हो गया था कि सभी लोग अपने अधिकारो के हनन को रोकने के लिए सामने आकर एक आवाज में अपनी आवाल को बुलंद करे।
इस हडताल के दौरान 04 मई को शिकगो के हेमार्केट में अचानक किसी आदमी के द्वारा बम बलास्ट कर दिया जाता है। जिसके बाद वहां पर मौजूद पुलिस अंधाधुंध गोली चलाने लगता है। जिससे कि वहा पर मौजूद कई लोग या तो घायल हो जाते है या मौत का शिकर हो गये। इस विरोध का अमेरिका में तुरन्त परिणाम नही मिला। परन्तु कर्मचारीयो व समाजसेवियो की मदद के फलरूवरूप् कुछ समय पश्चात भारत व अन्य देशो में 08 घंटे वाली कार्य पद्यति को अपनाये जाने लगा। तब से श्रमिक दिवस को पूरे विश्व में बडे ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस दिन मजदूर वर्ग तरह-तरह की रैलियां निकाल कर प्रदर्शन करते है।
भारत में मजदूर दिवस
श्रमिक दिवस को ना सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व में एक विरोध के रूप् में मनाया जाता है। ऐसा तब होता है जब कामकाजी पुरूष व महिला अपने अधिकरो व हित की रक्षा के लिए सडको पर उतरकर जुलुस निकालते है। विभिन्न श्रम संगठन व ट्रेड यूनियन अपने लोगो के साथ जुलुस,रैली व परेड निकालते है। जुलुस के अलावा बच्चो के लिए तरह-तरह की प्रतियोगिता भी होता है। जिससे की बच्चे भी इसमें बढ-चढ कर हिस्सा ले और एकजुटता का वास्तविक मतलब को समझ सके। इस दिन मीडिया के सभी अंग हैप्पी लेबर डे के मैसेज दिखाकर कर मजदूरो के हितो में एक प्रकार से प्रचार कर जागरूकता पैदा करते हे। ऐसा करने से लोगो का श्रमिक दिवस के प्रति लोगो में जागस्कता बढता है।
इसके अलावा अलग-अलग राजनैतिक पार्टियो के नेता जनता के सामने भाषण भी देते है। साथ ही कुछ नेता मजदूरो के साथ जुमले बाजी भी करते हुए नजर आते है। 1960 में बम्बई को भाष के आधार पर दो हिस्सो में विभाजित कर दिया गया। जिससे गुजरात व महराष्ट को इसी दिन 01 मई को स्वतंन्त्र राज्य का दर्जा भी प्राप्त हुआ था। इस लिए मई दिवस के दिन महाराष्ट्र व गुजरात दिवस के रूप में क्रमशः महराष्ट्र व गुजरात में बडे ही ध्ूाधम से मनाया जाता है। श्रमिक दिवस एक ऐसा अवसर होता है। जब उस समय पूरी दुनिया के सभी लोग मजदूर को एक साथ सबके सामने अपनी ताकत,एकजुटता दिखाने का मौका भी मिलता है। जो यह दर्शाता है कि श्रमिक वर्ग अपने अधिकरो के लिए कितने प्रभावी ढंग से सकारात्मक रूप् में संर्घष कर सकता है। यह मेरा भावना है उन लोगो के प्रति जो सेवक को गुलाम समझते है। उनका हक मारते है साथ ही उनका शोषण भी करते है। मजदूर तुच्छ नही होता है,मजदूर समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई होता है। एक प्रकार से देखा जाए तो मजदूर के श्रेणी में सभी आ जाते है ,क्योकि कार्य के बदले धन अर्जन करने वाले माध्यम को ही मजदूर कहा जाता है। इस श्रेणी में लगभग चाहे व राजा हो चाहे एक साधारण सा मजदूर सभी आ जाते है। हां यदि वर्गीकरण के दृष्टिकोड से देखा जाए तो इन्हे विभाजित किया जा सकता है।
प्रत्तेक वर्ष की तरह इस वर्ष भी 01 मई को मजदूर दिवस के तौर पर मनाया जायेगा और इस दिन सभी का अन्र्तराष्ट्रीय अवकाश होता है।
मै मजदूर हूं मजबूर नही,यह कहने में मुझे शर्म नही।।
अपने खून पसीने की कमाई खाता हूं ,मै मिट्टी को सोना बनाता हूं।।
हर कोई यहां पर मजदूर है,चाहे पहने सूट बूट या मैला कुचैला।।
मेहनतत करके कमाता है ,कोई सैकडा कोई दहला ।।
यहा हर कोई मजदूर कहलाता है ,चाहे अनपढ हो चाहे पढा लिखा।।
जिसके कन्धो पर बोझ बढा ,वो भारत मां का बेटा कौन ।।
जिसने पसीने से भूमि को सीचा,वो भारत माता का बेटा कौन।।
वह किसी का गुलाम नही ,अपने दम पर जीता है।।
सफलता का एक कण ही सही ।
लेकिन है अनमाले जो अपने आपको मजदूर कहलाता है मजबूर नही।।
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