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नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण, कारण और इलाज

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नवजात शिशु में पीलिया एक सामान्य स्थिति है नवजात या शिशु को होने वाले पीलिया को चिकित्सा के क्षेत्र नवजात पीलिया (Newborn jaundice) कहते है। पीलिया शिशुओं में एक आम स्थिति है, जो लगभग 50 प्रतिशत से अधिक नवजात शिशुओं को प्रभावित करती है। गंभीर मामलों में इसका उचित इलाज न किया जाये तो नवजात शिशु में पीलिया से बच्चे को बहरापन, मस्तिष्क पक्षाघात (cerebral palsy), मस्तिष्क की क्षति और मृत्यु भी हो सकती है। आज हम इस लेख के माध्यम से आपको नवजात पीलिया क्या है, नवजात शिशु में पीलिया के कारण, लक्षण, बचाव, इलाज, रोकथाम और घरेलू उपचार से अवगत कराएंगे।

नवजात शिशु में पीलिया (जॉन्डिस) क्या है –
नवजात पीलिया (Infant jaundice) एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक बच्चे की त्वचा और आँखें पीली हो जाती है। यह स्थिति आमतौर पर बच्चे के जन्म के पहले सप्ताह से ही देखी जा सकती है। नवजात बच्चों में पीलिया (Newborn jaundice) बहुत सामान्य स्थिति है, और यह तब पैदा होती है जब बच्चों के पास रक्त में उच्च स्तर का बिलीरुबिन (bilirubin) पाया जाता है। यह लाल रक्त कोशिकाओं के सामान्य रूप से टूटने के दौरान उत्पन्न होने वाला एक पीला रंगद्रव्य है। यह रोग तब होता है जब रक्त के प्रवाह में से बिलीरुबिन को हटाने के लिए एक बच्चे का यकृत पर्याप्त परिपक्व या तैयार नहीं होता है।

पीलिया (जॉन्डिस) समय से पहले जन्मे बच्चों में लड़कियों की तुलना में लड़कों को अधिक प्रभावित करता है। पूर्णकालीन या पूर्ण समय में पैदा होने वाले स्वस्थ बच्चों को पीलिया प्रभावित नहीं करता है।

अच्छी खबर यह है कि ज्यादातर मामलों में, नवजात जॉन्डिस (Infant jaundice), बच्चे के यकृत के पूर्ण रूप से विकसित होने के बाद दूर हो जाता है।

नवजात शिशु में पीलिया होने के कारण – 
एक बच्चे के बिलीरुबिन के स्तर में वृद्धि नवजात बच्चों में पीलिया (Newborn jaundice) का प्रमुख कारण है। जब लाल रक्त कोशिकाओं को यकृत में तोड़ दिया जाता है, तब बिलीरुबिन एक अपशिष्ट उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है। तथा यह मल के साथ शरीर से निकाल दिया जाता है।

सामान्य अवस्था में यकृत रक्त प्रवाह से बिलीरुबिन को फ़िल्टर करता है और इसे आंतों के रास्ते में छोड़ देता है जहाँ से इसे मल के साथ बाहर कर दिया जाता है। एक नवजात शिशु के अपरिपक्व या अविकसित यकृत अकसर बिलीरुबिन (bilirubin) को पर्याप्त रूप से नहीं हटा पता है, जिससे बिलीरुबिन की मात्रा अधिक हो जाती है। यही बिलीरुबिन की अधिक पर्याप्त मात्रा पीलिया का कारण बनती है। यह आमतौर पर नवजात शिशु के जन्म के दूसरे या तीसरे दिन दिखाई देता है।

कभी-कभी जन्म के दौरान एक बच्चा रक्त को निगल लेता है। यह निगला रक्त बच्चे की आंतों में टूटता है और उत्पन्न हुआ बिलीरुबिन, रक्त प्रवाह में अवशोषित कर लिया जाता है।

एक मां जो अपने पास मधुमेह के लक्षण रखती है, वह अपने बच्चे को नवजात पीलिया (Infant jaundice) विकसित कर सकती है।

क्रिगलर-नज्जर सिंड्रोम (Crigler-Najjar syndrome) और लुसी-ड्रिस्कॉल सिंड्रोम (Lucey-Driscoll syndrome) भी ऐसी स्थितियां हैं, जो पीलिया का कारण बन सकती हैं।

इसके अतिरिक्त कुछ परिस्थितियां एसी भी हैं जो पीलिया का कारण बन सकती हैं उनमें शामिल हैं:
  • हाइपोक्सिया – कम ऑक्सीजन के स्तर
  • एंजाइम की कमी
  • जीवाणु या वायरस संक्रमण
  • आंतरिक रक्तस्राव
  • बच्चे के रक्त में संक्रमण (सेप्सिस)
  • मां के खून और बच्चे के खून के बीच विषमतायें
  • लीवर में खराबी

नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण –
नवजात शिशु में पीलिया (Newborn jaundice) के लक्षण सामान्य तौर पर जन्म के दो से तीन दिन के बाद विकसित होते हैं और बच्चा जब दो से तीन सप्ताह का होता है तब यह लक्षण उपचार के बिना ही ठीक हो सकते हैं। बच्चों में पीलिया (Infant jaundice) का सबसे आम लक्षण पीली त्वचा और पीला स्क्लेरा (sclerae) (स्क्लेरा आंखों का सफेद भाग होता है) का होना है। यह आम तौर पर सिर से शुरू होता है, तथा छाती, पेट, बाँहों और पैरों में फैलता है।

नवजात बच्चों में पीलिया के लक्षणों में भी शामिल हो सकते हैं:
  • वजन का ना बढ़ना।
  • उनींदापन (drowsiness)।
  • पीले मल का उत्पादन।
  • दूध चूसने या खिलाने में कमजोर होना।
  • तेज आवाज में (high-pitched) रोना।
  • चिड़चिड़ापन।
  • बुखार आना।
  • शरीर के अंगों जैसे- आँख, चेहरा, हाथ की हथेली का पीला दिखाई देना।
  • गाढ़ा पीला मूत्र निकलना – जबकि नवजात शिशु का मूत्र रंगहीन होना चाहिए।

नवजात शिशु में पीलिया की जांच –
एक बच्चे का उचित इलाज करने के लिए, नवजात पीलिया (Newborn jaundice) का सटीक कारण का पता किया जाना बहुत जरूरी होता है। शिशु के लक्षणों के आधार पर डॉक्टर, नवजात पीलिया का निदान करता है। हालांकि, पीलिया के निदान की प्रक्रिया में डॉक्टर को बच्चे के रक्त में बिलीरुबिन (bilirubin) के स्तर को मापने की आवश्यकता पड़ती है । बिलीरुबिन का स्तर पीलिया की गंभीरता और उपचार को निर्धारित करने में मदद करता है। पीलिया को निर्धारित करने के लिए टेस्ट में शामिल हैं:
  • एक शारीरिक परीक्षा के आधार पर डॉक्टर नवजात की त्वचा, आँख, हाथ की हथेली में पीलापन का परीक्षण करता है।
  • बच्चे के खून के नमूने का एक प्रयोगशाला परीक्षण- इस परीक्षण के आधार पर सीरम बिलीरुबिन स्तर की जांच की जा सकती है। इस परीक्षण के परिणामों के आधार पर, डॉक्टर अन्य परीक्षणों का आदेश दे सकता है।
  • नवजात बच्चों में पीलिया (Infant jaundice) की स्थिति में एक यंत्र के द्वारा त्वचा का परीक्षण किया जाता है, जिसे एक ट्रांस क्यूटनेस बिलीरुबिन मीटर (transcutaneous bilirubinometer) कहा जाता है, जो त्वचा के द्वारा एक विशेष प्रकाश के परावर्तन को मापता है। इस यंत्र की मदद से बगैर रक्त परीक्षण किए बिलीरुबिन के स्तर को माप लिया जाता है।
  • कोम्ब्स टेस्ट (Coombs test) – इस टेस्ट के माध्यम से लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला करने वाली एंटीबॉडी (antibodies) का पता लगाया जाता है।
  • बच्चे के पीलिया के अंतर्निहित विकारों का पता लगाने के लिए डॉक्टर पूर्ण रक्त परीक्षण या मूत्र परीक्षण का आदेश दे सकता है।

नवजात शिशु में पीलिया के सामान्य श्रेणी –
18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए बिलीरुबिन की सामान्य मात्रा 1 मिलीग्राम / डेसीलिटर होती है।

यदि रक्त में बिलीरुबिन (Bilirubin) की सामान्य मात्रा का स्तर 2 और 3 मिलीग्राम / डेसीलिटर के बीच पाया जाता है तो इस स्थिति में पीलिया होता है जिससे त्वचा पीले रंग की हो जाती है।

एक नवजात शिशु, जन्म के तनाव के कारण उच्च बिलीरुबिन स्तर सामान्य है। जन्म के पहले 24 घंटों के भीतर सामान्य अप्रत्यक्ष बिलीरुबिन 5.2 मिलीग्राम / डीएल के आस पास होगा। लेकिन कई नवजात शिशुओं में जन्म के पहले कुछ दिनों के भीतर किसी प्रकार का पीलिया के कारण 5 मिलीग्राम / डीएल स्तर से ऊपर का स्तर होता है।

नवजात शिशु के पीलिया का इलाज –
सामान्य बच्चों में पीलिया (Newborn jaundice) अकसर दो या तीन हफ्तों के भीतर अपने आप ठीक हो जाता हैं। मध्यम या गंभीर पीलिया के लिए बच्चे को लंबे समय तक नवजात नर्सरी (newborn nursery) में रखने की आवश्यकता पड़ सकती है।

नवजात बच्चे के खून में बिलीरुबिन के स्तर को कम करने के लिए निम्न उपचार किए जा सकते हैं:

नवजात शिशु के पीलिया का इलाज के लिए लाइट थेरेपी (फोटोथेरेपी)
इस थेरपी के तहत बच्चे को विशेष प्रकार के, नीले-हरे रंग के स्पेक्ट्रम के प्रकाश में रखा जाता है। प्रकाश बिलीरुबिन अणुओं के आकार और संरचना में बदलाव करता है, जिससे कि बिलीरुबिन को मूत्र और मल के साथ उत्सर्जित किया जा सके। यह प्रकाश एक पराबैंगनी प्रकाश नहीं होता है तथा इस थेरपी में एक सुरक्षात्मक प्लास्टिक कवर, किसी भी प्रकार से उत्सर्जित होने वाले पराबैंगनी प्रकाश को फ़िल्टर करता है।

नवजात शिशु के पीलिया का इलाज के लिए इंट्रावेनस इम्युनोग्लोबुलिन 
पीलिया, मां और बच्चे के रक्त में अंतर से संबंधित हो सकता है। अतः इस स्थिति के परिणामस्वरूप बच्चे, अपनी मां से एंटीबॉडी को ग्रहण करते है। यह एंटीबॉडी, बच्चे में रक्त कोशिकाओं के टूटने का कारण बन सकती है। इम्युनोग्लोबुलिन का इंट्रावेनस ट्रांसफ्यूजन (Intravenous transfusion), एक रक्त प्रोटीन जो एंटीबॉडी के स्तर को कम करता है, बच्चों में पीलिया (Infant jaundice) को कम करने में अपना योगदान दे सकता है। और साथ ही साथ एक रक्त संक्रमण को भी कम कर सकता है।

नवजात शिशु के पीलिया का इलाज के लिए एक्सचेंज ब्लड ट्रांसफ्यूजन 
जब किसी कारण बस गंभीर पीलिया लाइट थेरेपी (फोटोथेरेपी) या अन्य उपचारों की मादद से ठीक नहीं होता है, तो बच्चे को रक्त के आदान-प्रदान की आवश्यकता हो सकती है। अतः इस उपचार के तहत- रक्त की थोड़ी मात्रा को बार-बार वापस लेना, बिलीरुबिन और मातृ एंटीबॉडी के स्तर को कम करना और फिर बच्चे को वापस रक्त स्थानांतरित करना शामिल है। यह प्रक्रिया शिशु की गहन देखभाल के अंतर्गत की जाती है।

नवजात शिशु में पीलिया की जटिलताएं –
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यदि नवजात पीलिया का समय पर इलाज न किया जाये तो यह निम्न जटिलताओं या समस्याओं का कारण बन सकता हैं।

तीव्र बिलीरुबिन एन्सेफैलोपैथी (Acute bilirubin encephalopathy) – पीलिया रोग के लिए जिम्मेदार रसायन बिलीरुबिन, मस्तिष्क कोशिकाओं के लिए एक जहरीली है। एक बच्चे में तीव्र बिलीरुबिन एन्सेफैलोपैथी के लक्षणों में बुखार, आलसीपन, उच्च-स्वर में रोना और शरीर या गर्दन का मुड़ जाना शामिल है। इस स्थिति में किया जाने वाला तत्काल उपचार आगे की क्षति को रोक सकता है।

कर्निकटेरस (परमाणु पीलिया) (Kernicterus) – यह एक संभावित घातक सिंड्रोम (syndrome)  होता है, जिसमें रोग में अनेक लक्षण एक साथ प्रगट होते हैं। यह तीव्र बिलीरुबिन एन्सेफैलोपैथी से मस्तिष्क की स्थायी क्षति का कारण बनता है।

अन्य गंभीर, लेकिन दुर्लभ जटिलताओं में बहरापन और मस्तिष्क पक्षाघात (लकवा) शामिल हैं।

नवजात शिशु पीलिया के जोखिम कारक – 
नवजात शिशु में पीलिया (Infant jaundice) के लिए सामान्य जोखिम कारक निम्न हैं:

समय से पहले जन्म – समय से पहले शिशुओं में गंभीर रूप से अविकसित लीवर और कम आंत्र संचार होते हैं, इसका मतलब है कि धीमी निस्पंदन (filtering) और बिलीरुबिन का मल के साथ कम विसर्जन होता है।

स्तनपान – यदि बच्चों को स्‍तनपान से पर्याप्त पोषक तत्व या ऊर्जा नहीं मिल पाती है या निर्जलित रहते हैं, उन बच्चों में पीलिया होने की अधिक संभावना होती हैं।

जन्म के दौरान चोट – इससे स्थिति में लाल रक्त कोशिकाएं तेजी से टूट सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप बिलीरुबिन के उच्च स्तर प्राप्त होते हैं।

नवजात शिशु में पीलिया की रोकथाम – 
शिशु में जॉन्डिस (Newborn jaundice) की रोकथाम के लिए निम्न उपाय अपनाएं जाने चाहिए।
  • नवजात शिशु में पीलिया की रोकथाम का सबसे अच्छा उपाय, पर्याप्त एवं उचित आहार है। शिशुओं के जन्म के कुछ दिनों तक प्रतिदिन 8 से 12 बार स्‍तनपान कराना चाहिए।
  • यदि किसी माँ को अपने बच्चे को स्‍तनपान कराने से सम्बंधित कोई प्रश्न या चिंता है, तो स्‍तनपान सलाहकार से बात करनी चाहिए।
  • गर्भावस्था के दौरान, एक माँ अपना रक्त परीक्षण करा सकती हैं।
  • बच्चे के जन्म के पहले पांच दिनों तक उसे अत्यंत निगरानी में रखें, तथा जॉन्डिस (Infant jaundice) से सम्बन्धी लक्षणों के पाए जाने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

नवजात शिशु में पीलिया के लिए घरेलू उपचार- 
नवजात शिशु में पीलिया (Newborn jaundice) के इलाज के लिए कुछ घरेलू उपचार अपनाये जा सकते है जो इस प्रकार हैं।

शिशु के पीलिया के लिए घर पर उपचार के लिए सूरज की रोशनी – सूरज की रोशनी पीलिया के मामले में बिलीरुबिन को तोड़ने में मदद करती है जिससे बच्चे का यकृत इसे अधिक आसानी से बाहर निकाल सके। अपने बच्चे को एक प्रकाशित खिड़की में दिन में दो बार 10 मिनट के लिए रखें, यह तरीका हल्के पीलिया को ठीक करने में मदद करता है। सीधे सूर्य की रोशनी में शिशु को न रखें।

नवजात शिशु में पीलिया के उपचार के लिए फोटैथेरेपी – यदि बिलीरुबिन का स्तर बहुत अधिक है, तो बच्चे को विशेष प्रकार के प्रकाश के तहत रखा जाना चाहिए। इस उपचार को फोटैथेरेपी कहा जाता है। इस थेरपी के लिए डॉक्टर से सलाह ली जा सकती है। डॉक्टर तय करेगा कि एक बच्चे के लिए फोटोथेरेपी शुरू करना है या नहीं।

फॉर्मूला दूध के साथ पूरक (Supplements with the formula) – अगर बच्चे को फॉर्मूला दूध खिलाया जा रहा है, तो डॉक्टर पूरक आहार निर्धारित कर सकता है। अतः यह आहार बच्चे के पीलिया को ठीक करने में मदद कर सकता है।

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