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सहजन की उन्नत खेती कैसे करें ?

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सहजन को मुनगा , मोरिंगा  या सुरजना  के नाम से जाना जाता है । यह भारतीय मूल का मोरिन्गासाए परिवार का सदस्य है। इसका वनस्पतिक नाम मोरिंगा ओलीफेरा  है। सहजन एक बहुवर्षिक, कमजोर तना और छोटी-छोटी पत्तियों वाला लगभग दस मीटर से भी उंचाई वाला पौधा है। इसकी ख़ासियत एक बड़ी ख़ासियत यह भी है कि यह कमजोर जमीन पर भी बग़ैर सिंचाई व देखभाल के सालों भर हरा-भरा रहता है। मुनगे का पौधा तेजी से बढने वाला पौधा होता है। सहजन की खेती  से 10 महीने में एक लाख रुपए तक कमा सकते हैं ।

सहजन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल सब्जी के रूप में किया जाता है. सहजन का पौधा एक साल बाद ही पैदावार देना शुरू कर देता है. सहजन के पौधे के सभी भाग (पत्ती, फूल, फल, बीज, डाली, छाल, जड़ें, बीज) उपयोगी होते हैं. सहजन के पौधे को कई नामों से जाना जाता है. सहजन का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयों में किया जाता है. आयुर्वेद में सहजन को शक्तिवर्धक माना गया है.

सहजन के पौधे पर लगभग 6 से 10 इंच लम्बी फलियां लगती है. इन फलियों का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है. सहजन की फलियों में किसी भी चीज़ से ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसमें प्रोटीन की मात्रा पानी के बाद सबसे ज्यादा पाई जाती है. जो मनुष्य के शरीर के लिए उपयोगी होते हैं.

सहजन की खेती के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नही पड़ती. और इसकी खेती के लिए किसी ख़ास तरह की मिट्टी की भी जरूरत नही होती. सहजन की खेती के लिए सामान्य पी.एच. की जरूरत होती है. इसकी खेती शुष्क प्रदेशों में भी आसानी से की जा सकती है.

मुनग़ा,सहजन के आयुर्वेद में लाभ-

स्थानीय भाषा में इसे मुनग़ा, सहजन तथा सुरजना नाम से जाना जाता है। मुनगे का यह पौधा कुपोषण दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । मुनगे को अफ़्रीकन देशों में माताओं का सबसे अच्छा दोस्त माना जाता है ।  वहीं सहजन या मुनगे को पश्चिमी देशों में इसे न्यूट्रीशन डाइनामाइट  के नाम से भी जाना जाता है। इसके साथ सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है।

मुनगा बहुउपयोगी पौधा है। सहजन या मुनगा केपौधे के सभी भागों, फल,फूल,पत्ती, का प्रयोग भोजन,दवा औद्योगिक कार्यो आदि में किया जाता है। मुनगा या मोरिंगा में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व व विटामिन है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार सहजन में दूध की तुलना में चार गुना पोटेशियम,संतरा की तुलना में सात गुना विटामिन सी पायी जाती है। सहजन या मोरिंगा के फूल,फल और पत्तियों का भोजन के रूप उपयोग में लाया जाता है। सहजन की छाल, पत्ती, बीज, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक औषधियाँ बनायी जताई हैं । जिससे 300 प्रकार की बीमारियों दूर की जा सकती है ।

मुनगा के पौधा से गूदा निकालकर कपड़ा और कागज उद्योग के काम में व्यवहार किया जाता है। हमारे देश की कई आयुर्वेदिक कम्पनियाँ जैसे संजीवन हर्बल कम्पनी सहजन से दवा बनाकर (पाउडर, कैप्सूल, तेल बीज आदि) विदेशों में निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहे हैं ।  क्षेत्र में सहजन की खेती से दूर-दराज के बाजारों में सब्जी के रूप में इसका सालों भर बिक्री कर आमदनी का साधन बना सकते हैं । इसके साथ औषधीय व औद्योगिक गुणों के कारण किसानों में लोकप्रिय हो सकती है । सहजन बिना किसी विशेष देखभाल एवं ज़ीरो कास्ट पर आमदनी देनी वाली फसल है। किसान भाई अपने घरों के आस-पास अनुपयोगी बेकार, परती ज़मीन पर सहजन के कुछ पौधे लगाकर जहां उन्हें घर के खाने के लिए सब्जी,  वहीं इसे बेचकर आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त कर अपना जीवन स्तर सुधार सकते हैं ।

दक्षिण भारतीय लोग सहजन के फूल, फल, पत्ती का प्रयोग विभिन्न प्रकार के दक्षिण भारतीय व्यंजनों में साल भर करते हैं । सहजन मुनग़ा या सूरजना का उपयोग अपने देश के अलावा फिलीपिंस, हवाई, मैक्सिको, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। बाजार में सहजन का फूल, छोटा-नन्हा कोमल सहजन से लेकर बड़ा और मोआ सहजन भी ऊँचे दामों में बिकता है।

जलवायु –
सहजन या मुनग़ा विभिन्न पारिस्थितिक अवस्थाओं में उगने वाला एक ढीठ स्वभाव का पौधा है। यह काफ़ी ठंड सहन कर लेता है। कम या ज्यादा वर्षा से पौधे को कोई नुकसान नहीं होता है।सहजन की खेती (sahjan  kheti) को पाला से नुकसान होता है। सामान्यतया 25-300 के औसत तापमान पर सहजन के पौधा का हरा-भरा व काफी फैलने वाला विकास होता है। फूल आते समय 400 से ज्यादा तापमान पर फूल झड़ने लगता है।

मिट्टी -
सहजन की खेती  की सभी प्रकार की मिट्टियों में जा सकती है। बेकार, बंजर और कम उर्वरा भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है, किंतु व्यवसायिक खेती के रूप में, जहाँ पर साल में दो बार फलनेवाला सहजन के प्रभेदों के उद्देश्य से मुनगे की खेती की जाती है। वहाँ पर सहजन की खेती के लिए मिट्टी का चयन 6-7.5 पी.एच. मान वाली बलुई दोमट मिट्टी करें।

उन्नत किस्में
सहजन की कई उन्नत किस्में हैं, जिन्हें भारत में जल्दी और अधिक पैदावार देने के लिए उगाया जाता है.

रोहित 1
सहजन की ये किस्म पौध रोपण के लगभग 6 महीने बाद ही पैदावार देना शुरू कर देती है. इसका पौधा साल में दो बार पैदावार देता है. इस किस्म के एक पौधे से एक बार में 10 किलो तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है. इसका पौधा लगभग 7 साल तक पैदावार दे सकता है. इस किस्म के सहजन का गुदा स्वादिष्ट, मुलायम और उच्च गुणवत्ता वाला होता है. इसकी फलियों की लम्बाई एक से सवा फिट के बीच पाई जाती हैं.

कोयम्बटूर 2
इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग एक साल के आसपास पैदावार देना शुरू करते हैं. जो तीन से 5 साल तक पैदावार देता है. इसके पौधे पर लगने वाली फलियों की लम्बाई एक फीट के आसपास पाई जाती हैं. एक पौधे से 200 से 375 फलियां प्राप्त की जा सकती हैं. इस किस्म की फलियों का रंग गहरा हरा और गुदा स्वादिष्ट होता है. इसका पौधा साल में दो बार फल देता है.

पी.के.एम – 1
इस किस्म का पौधा 5 फिट तक की लम्बाई का होता है. जो पौध रोपण के लगभग 8 से 9 महीने बाद पैदावार देना शुरू कर देता है. इसका पौधा भी साल में दो बार पैदावार देता है. इसके एक पौधे से 200 से 350 फलियां प्राप्त होती है. इस किस्म का पौधा 4 से 5 साल तक पैदावार देता है.

पी.के.एम – 2
सहजन की इस किस्म को अधिक पानी की जरूरत के आधार पर तैयार किया गया है. इस किस्म की कच्ची फली हरे रंग की और बहुत स्वादिष्ट होती है. जिसकी लम्बाई एक से दो फिट तक पाई जाती है. इसके एक पौधे से एक बार में 300 से 400 फलियां प्राप्त होती है. सहजन की ये किस्म भी साल में दो बार ही पैदावार देती हैं.

खेत की तैयारी

सहजन की खेती के लिए खेत में मौजूद पहले की फसल के सभी अवशेष नष्ट करने के बाद एक गहरी जुताई कर उसमें रोटावेटर चला दें. इससे जमीन समतल और भुरभुरी हो जायेगी. उसके बाद खेत में तीन मीटर की दूरी छोड़ते हुए एक फिट व्यास और एक फिट गहराई के गड्डे तैयार कर लें. उसके बाद इन गड्डों में उचित मात्र में उर्वरक मिलाकर पानी देकर तैयार कर लें. इन गड्डों को पौधे की रोपाई से 10 दिन पहले तैयार के लेना चाहिए.

पौध तैयार करना

सहजन के बीज सीधे खेत में नही लगाए जाते पहले इसके पौधों को नर्सरी में तैयार किया जाता हैं. उसके बाद जब पौधा लगभग डेढ़ से दो फिट की लम्बाई का हो जाता है, तब उसे खेत में लगाया जाता है. नर्सरी में इसकी पौध पॉलीथिन बैग में तैयार की जाती है. पॉलीथिन बैग में इसकी पौध तैयार करते वक्त प्रत्येक बैग में दो से तीन बीज डालने चाहिए. इसका बीज लगभग 10 दिन में अंकुरित हो जाता है. उसके लगभग एक या दो महीने बाद इसे खेत में लगाया जाता है.

पौध लगाने का वक्त और तरीका
नर्सरी में तैयार की हुई पौध को खेत में लगाते वक्त पॉलीथिन में मौजूद दो से तीन पौधों में से सिर्फ एक अच्छे वाले पौधे को बचाकर बाकी पौधों को नष्ट कर दें. उसके बाद तैयार किये गए गड्डों में इसे एक और छोटा गड्डा तैयार कर उसमें लगा दें.

इसके पौधों को जुलाई से सितम्बर माह तक खेत में लगा देना चाहिए. क्योंकि बारिश का मौसम होने की वजह से पौधा अच्छे से विकास करता है. और पौधे को सिंचाई की जरूरत भी नही होती.

पौधों की सिंचाई
सहजन के पौधे को पानी की काफी कम जरूरत होती हैं. इस कारण सर्दियों में इसके पौधे की 20 से 22 दिन में एक बार सिंचाई करनी चाहिए. और गर्मियों के टाइम में सप्ताह में इसकी एक सिंचाई काफी होती है. जब पौधे पर फूल लगने लगे तब पौधे को कम मात्रा में पानी देना चाहिए. लेकिन ज्यादा सुखा रहने पर भी फूल झड़ने लगते हैं. इसलिए जब पौधे पर फूल लगने लगे तब पौधों में उचित नमी बनाकर रखनी चाहिए.

उर्वरक की मात्रा
सहजन के पौधे को उर्वरक की ज्यादा जरूरत नही होती. इसके पौधों को खेत में लगाते वक्त प्रत्येक पौधों को 10 किलो गोबर की खाद और 50 किलो एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पौधों को साल में एक बार देना चाहिए.

पौधों का रखरखाव
सहजन के पौधे जब तीन से चार फिट के हो जाएँ तब उनके शीर्ष (चोटी) को तोड़ देना चाहिए. इससे पौधे में नई शाखाएं बनने लगती हैं. इसके अलावा प्रत्येक साल में फल तोड़ने के बाद एक बार पौधे की कटिंग कर दें. इससे पौधे में और नई शाखाएं जन्म लेने लगती हैं. जिससे पैदावार में भी वृद्धि देखने को मिलती है.

खरपतवार नियंत्रण
सहजन के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की दो से तीन नीलाई गुड़ाई कर देनी चाहिए. इससे पौधा अच्छे से वृद्धि करता है. और पैदावार भी अच्छी प्राप्त होती है.

पौधों में लगने वाले रोग
सहजन के पौधे पर काफी कम ही रोग देखने को मिलते हैं. लेकिन कुछ किट रोग ऐसे भी हैं जो पौधे को ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं.

भुआ पिल्लू
भुआ पिल्लू किट रोग का लार्वा पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नष्ट कर देता हैं. शुरुआत में ये लार्वा पौधे पर समूह में एक साथ रहता हैं. लेकिन बाद में अपने भोजन की तलाश में ये पूरे पौधे पर फैल जाता है. इस रोग का लार्वा एक पौधे को नष्ट करने के बाद पास वाले और पौधों पर भी फैलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर सर्फ के घोल की छिड़कना चाहिए. जिससे ये किट तुरंत मरने लगता है.

फल मक्खी
सहजन पर फल मक्खी का रोग काफी कम देखने को मिलता है. फल मक्खी का रोग पौधे की पत्तियों और फलों को नुकसान पहुँचाती है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों और फलों का रस चूसकर उन्हें नष्ट कर देते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाइक्लोरोवास का छिडकाव उचित मात्रा में करना चाहिए.

फलियों की तुड़ाई
सहजन की फलियों की तुड़ाई उनके कच्चे रूप में ही की जाती है. फलियों के लगने के बाद जब उनका रंग हरा और आकर्षक दिखाई देने लगे तब उन्हें पकने से पहले तोड़ लेना चाहिए. फलियों में रेशे बनने के बाद नही तोड़ना चाहिए. उसके बाद फलियाँ पकने के लिए छोड़ देना चाहिए. सहजन की कई किस्में हैं जो साल में दो बार पैदावार देती हैं. इस कारण इसकी साल में दो बार तुड़ाई की जाती हैं. सहजन की तुड़ाई पहली तुड़ाई फरवरी-मार्च में करनी चाहिए और दूसरी तुड़ाई सितम्बर-अक्टूबर के महीने में करनी चाहिए.

पैदावार और लाभ
सहजां के एक पौधे से एक बार में औसतन 200 से 300 फलियां प्राप्त होती हैं. इनका कुल वजन 40 से 50 किलो तक पाया जाता है. एक हेक्टेयर में सहजन के लगभग 400 से 500 पेड लगाए जा सकते हैं. इस हिसाब से एक हेक्टेयर से लगभग 1600 से लेकर 2000 किलो तक सहजन प्राप्त किये जा सकते हैं. जिनसे किसान भाई एक बार में एक से दो लाख तक की कमाई आसानी से कर सकता हैं.

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