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''तालिबान की अंतरिम सरकार के कम से कम 14 सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की काली सूची में हैं।''

 
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अफगानिस्तान (Afghanistan) में काफी इंतजार के बाद अब तालिबान (Taliban) की सरकार बन गई है. 20 सालों बाद आधिकारिक रूप से अब तालिबान मध्य एशिया का दिल कहे जाने वाले अफगानिस्तान पर राज करेगा. हालांकि इससे भी खास बात है, तालिबान की सरकार चलाने के लिए चुने गए नुमाइंदे. जिसमें सबसे खतरनाक नाम शामिल है खूंखार आतंकवादी संगठन हक्कानी नेटवर्क (Haqqani Network) के सरगना सिराजुद्दीन हक्कानी (Sirajuddin Haqqani) का जिस पर अमेरिका ने 50 लाख डॉलर का इनाम रखा है. अगर इंडियन करेंसी में इसे देखें तो यह 37 करोड़ रुपए के करीब होता है.

सिराजुद्दीन हक्कानी दुनिया भर के लिए तो खतरनाक है ही, लेकिन उसने भारत को भी कम जख्म नहीं दिए हैं. सिराजुद्दीन हक्कानी और उसके पिता ने 2008 में काबुल के भारतीय दूतावास पर आत्मघाती हमला कराया था. जिसमें 58 लोग मारे गए थे. अब सवाल उठता है कि जो तालिबान शुरू से कहता आया है कि वह भारत से अच्छे संबंध चाहता है. और अफगानिस्तान में एक स्थिर सरकार बनाना चाहता है, ताकि उसे वैश्विक रूप से मान्यता मिल सके. ऐसे में सिराजुद्दीन हक्कानी जैसे खूंखार आतंकवादी को अपने सरकार में गृह मंत्री जैसा पद देना क्या यह नहीं दर्शाता कि तालिबान की वह बात केवल हवा हवाई थी.

सिराजुद्दीन हक्कानी का नाम उन लोगों में शामिल है जिन्होंने अफगानिस्तान में फिदायीन या आत्मघाती हमलावरों की एक फौज खड़ी करी है. पाकिस्तान के वजीरिस्तान में रहने वाला सिराजुद्दीन हक्कानी, हक्कानी नेटवर्क का सरगना साल 2001 के बाद बना. इसने भारत के साथ-साथ पाकिस्तान को भी गहरे जख्म दिए हैं. साल 2014 में पेशावर के एक स्कूल में हमला हुआ था, जिसमें 200 बच्चे मारे गए थे. उसका मास्टरमाइंड भी हक्कानी नेटवर्क ही था. अमेरिका ने हक्कानी नेटवर्क को 2012 से ही बैन कर रखा है

तालिबान की नई सरकार में भारत के लिए क्या संदेश
तालिबान की जो नई सरकार बनी है अगर उसे ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि यह सरकार भारत के बजाय पाकिस्तान के पक्ष में ज्यादा झुका हुआ नजर आता है. इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि अफगानिस्तान की नई सरकार में खूंखार आतंकवादी संगठन हक्कानी नेटवर्क और कंधार केंद्रित तालिबान समूह का कैबिनेट में वर्चस्व बताता है कि दोहा स्थित जिस तालिबान ग्रुप ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वार्ता शुरू की थी और नई दिल्ली से भी संपर्क किया था उसे कहीं ना कहीं किनारे कर दिया गया है. तालिबान की नई कैबिनेट में 33 में से 20 कंधार केंद्रित तालिबान समूह और हक्कानी नेटवर्क के लोग हैं. जिन का झुकाव कट्टरपंथी विचारधारा और पाकिस्तान की ओर ज्यादा है.

वहीं बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सिराजुद्दीन हक्कानी जो हक्कानी नेटवर्क का प्रमुख है, उसे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का सबसे खास आदमी माना जाता है. 2008 में काबुल के भारतीय दूतावास पर हमला हो या फिर 2009 से 2010 के बीच हक्कानी नेटवर्क द्वारा भारतीयों और भारत के हितों को निशाना बनाना हो. इन सब के पीछे आईएसआई के हाथ का ही दावा किया जाता है. और आईएसआई के लिए सारा काम सिराजुद्दीन हक्कानी करता आया है.

बिल्कुल नहीं बदला तालिबान
अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद से ही जिस तरह से तालिबान पूरी दुनिया में ढिंढोरा पीट रहा था कि वह अब 90 के दशक वाला तालिबान नहीं है और वह अफगानिस्तान में एक स्थिर सरकार चाहता है, उस पर पानी फिर गया है. जिसे वैश्विक रूप से मान्यता मिली और अन्य देशों से भी वह बेहतर संबंध चाहता है. लेकिन अपनी नई सरकार की घोषणा के बाद उसने यह बात साफ कर दी कि तालिबान आज भी बिल्कुल उसी विचारधारा और उसी सोच से आगे बढ़ रहा है, जैसे वह 90 के दशक में था.

तालिबान की नई सरकार में 33 मुल्ला हैं और 4 ऐसे लोग हैं जिन पर अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाया गया है. महिलाओं को हक देने और सरकार में शामिल करने की बात करने वाले तालिबान ने अपनी नई सरकार में किसी भी महिला को जगह नहीं दी है. ऊपर से सिराजुद्दीन हक्कानी जैसे खूंखार आतंकवादियों को अफगानिस्तान का गृह मंत्री बनाकर तालिबान ने साफ कर दिया है कि वह शायद ही किसी देश के साथ बेहतर संबंध बना सके या फिर उसकी सरकार को वैश्विक मान्यता मिल सके.

सिराजुद्दीन हक्कानी केवल भारत के लिए ही नहीं अमेरिका और ब्रिटेन के लिए भी चुनौती
हक्कानी नेटवर्क का सरगना सिराजुद्दीन हक्कानी जिस पर अमेरिका ने 50 लाख डॉलर का इनाम रखा है. वह भारत के लिए चुनौती तो है ही लेकिन साथ ही साथ अमेरिका और ब्रिटेन के लिए भी खतरे की घंटी है. अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हुआ और तालिबान ने जिस तरह से बयानबाजी शुरू कि वह पहले वाला तालिबान नहीं रहा और अफगानिस्तान में एक स्थिर सरकार चाहता है. दुनिया के अन्य देशों से वह बेहतर संबंध चाहता है और अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल वह किसी भी देश के खिलाफ नहीं करेगा, इन बयानों ने कहीं ना कहीं यूरोपीय देशों को कुछ हद तक मना लिया था कि नई तालिबानी सरकार को शायद वैश्विक रूप से मान्यता मिल जाए.

हालांकि अब सिराजुद्दीन हक्कानी जैसे खूंखार आतंकवादियों को अफगानिस्तान सरकार का गृह मंत्री नियुक्त कर तालिबान ने अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार ली है. ऊपर से जो अमेरिका तालिबान से बातचीत करने की बात कर रहा था समझ नहीं आता कि वह अब उस आतंकवादी से कैसे सुरक्षा मुद्दों पर बातचीत करेगा, जिस पर उसने खुद 50 लाख डॉलर का इनाम रखा है. इसी सिराजुद्दीन हक्कानी ने 2017 में काबुल में हमला करवाया था जिसमें 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी.


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