ऐसा माना जाता है कि पहली जेल सन् 1403 में इंग्लैण्ड में बनी थी, लेकिन तब उनमें अपराधियों को नहीं रखा जाता था, तब अपराधियों को सबके सामने सजा देने की परंपरा ज्यादा प्रचलित थी, जिससे दूसरों को भी सबक मिले। तब ज्यादातर जुर्माना करने या कोड़े लगाने की सजा दी जाती थी। बहुत ज्यादा बड़ा अपराध करने पर गर्दन उड़ा देने का रिवाज था। दूसरे छोटे-मोटे अपराधियों को जहाजों के चप्पू चलाने की सजा भी दी जाती थी।
उस समय तक जो छोटी-बड़ी जेलें थीं, उनका दूसरा उपयोग होता था। अंग्रेज व फ्रेंच शासक अपने राजनीतिक दुश्मनों को इन जेलों में डाला करते थे। ऋण न अदा कर पाने वालों को भी जेलों में डाला जाता था, लेकिन उनके सगे-सम्बन्धी उनसे मिलने आ-जा सकते थे। हाँ, ऋण चुका देने के बाद वह व्यक्ति जेल से रिहा कर दिया जाता था।
धीरे-धीरे अपराधियों को जेलों में डालने की परंपरा की शुरूआत हुई। उस समय हर तरह के अपराधियों, पागलों, भिखारियों को जेलों में एक साथ बंद किया जाता था। जेलों की स्थिति भी बड़ी खराब थी। वे गंदी, बदबूदार और अंधेरी रहती थीं। ढेर सारे लोगों को एक ही कमरे में बंद कर दिया जाता था। फिर जॉन हॉवर्ड नामक एक ब्रिटिश सुधारवादी ने जेलों की स्थिति सुधारने की मुहिम चलायी। उन्हीं की पहल पर ऐसी जेल बनायी गयी, जहाँ अपराधियों को सुधारे जाने पर जोर दिया गया।
18वीं शताब्दी में ब्रिटेन में अपराधियों को 'पेनेल कालोनी' में भेजे जाने का भी रिवाज था। अपराधियों को उत्तरी अमरीका व आस्ट्रेलिया भेजा जाता था और वे वहाँ कपास के खेतों में काम किया करते थे या नौकर बना दिये जाते थे। अगर वे वहाँ खराब व्यवहार करते थे, तो उन्हें वापस ब्रिटेन बुला लिया जाता था और जंजीरों में जकड़कर उनसे पत्थर तुड़वाये जाते थे और सड़कें बनवायी जाती थीं।
19वीं शताब्दी में इस बात पर जोर दिया जाने लगा कि अपराधियों को जेलों में अकेले रखा जाये। तब ऐसी जेलें बनीं, जिनमें कैदखाने छोटे-छोटे थे और एक कैदखाने में सिर्फ एक अपराधी को ही रखा जाता था। इसके बाद यह नियम भी बनाया गया कि एक कैदखाने में कई कैदियों को एक साथ तो रखा जा सकता है, पर वे एक दूसरे से बातचीत नहीं कर सकते। फिर अच्छे व्यवहार पर सजा कम करने सम्बन्धी नियम भी बने।
अब तो कैदियों को पुनर्वास व प्रशिक्षण भी दिया जाने लगा है, जिससे वे जेल से निकलकर भले आदमी बन सकें और अपना जीवनयापन कर सकें। दिल्ली की तिहाड़ जेल में प्रसिद्ध आईपीएस अधिकारी व मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त सुश्री किरण बेदी ने कैदियों के बीच बहुत उल्लेखनीय कार्य किया है।
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