एक किसान था। उसका नाम चाउरेन था। युवा हो जाने पर भी उसका विवाह नहीं हुआ था। इस कारण उसे खेत के काम के साथ-साथ घर का सारा काम भी करना पड़ता था। दोनों जगह काम करने के कारण वह बहुत थक जाता था। उसी के पड़ोस में एक बढ़ई रहता था। वह शादी-शुदा था। उसकी पत्नी घर का सारा काम करती थी और बढ़ई केवल बढ़ईगीरी करता था। जब वह अपना काम समाप्त कर लेता था तो उसे पत्नी द्वारा बनाया खाना तैयार मिलता था। इस तरह बढ़ई अपनी पत्नी के साथ हँसी-खुशी रहता था।
चाउरेन बढ़ई को देखकर सोचता था कि यदि उसकी भी पत्नी होती तो उसे भी बना-बनाया स्वादिष्ट खाना मिलता और आराम भी मिलता। चाउरेन के मन में विवाह करने की इच्छा पैदा हुई। वह एक दिन बढ़ई के पास पहुँचा और बोला, “मित्र, तुम लकड़ी की कितनी सुंदर-सुंदर चीजें बनाते हो ! क्या मेरे लिए लकड़ी की एक सुंदर युवती नहीं बना सकते ? मैं तुम्हें मुँह-माँगा पैसा दूँगा।”
बढ़ई ने उत्तर दिया, “क्यों नहीं बना सकता मित्र ! अवश्य बनाऊंगा। तुम एक महीने बाद आना ।”
चाउरेन एक महीने बाद फिर बढ़ई के घर पहुंचा। उसने देखा कि संगोई (ओसार) में लकड़ी की एक सुंदर स्त्री खड़ी है। चाउरेन ने बढ़ई को पुकारा। बढ़ई घर के अंदर से निकलते हुए बोला, “लो मित्र, तुम्हारे लिए लकड़ी की युवती तैयार है। कहो सुंदर है न !”
चाउरेन ने उत्तर दिया, “बहुत सुंदर है मित्र ! लेकिन यदि इसके दाहिने गाल पर एक काला तिल लगा दो तो इसकी सुंदरता में चार चाँद लग जाएंगे।”
बढ़ई ने कहा, “इसमें क्या है, अभी लगा देता हूँ।” और उसने युवती के गाल पर काला तिल लगा दिया। चाउरेन ने लकड़ी की मूर्ति की कीमत चुकाई और उसे अपने घर ले आया। उसने उसे अपने सोने वाले कमरे में खड़ा कर दिया और अच्छे-अच्छे वस्त्र तथा आभूषण पहना दिए। अब वह मूर्ति सजीव युवती जैसी लगने लगी।
अगले दिन चाउरेन ने खेत से लौटकर खाना तैयार किया । उसके बाद वह घर के बाहर निकला और वहीं से आवाज दी, “क्या खाना तैयार हो गया है?” इसके बाद वह घर के अंदर गया ओर बोला, “हाँ जी, तैयार है। हाथ-पैर धोकर खाने आ जाइए।” इसके बाद चाउरेन फिर बाहर आया और “अच्छा” कहकर, हाथ-पैर धोकर अंदर चला गया। उसने उस दिन भरपेट भोजन किया और मन में सोचा कि यह भोजन उसकी पत्नी ने ही बनाया है । इस प्रकार वह जीवन में पहली बार खुश हुआ।
यह क्रम कई महीने चलता रहा । एक दिन चाउरेन ने खेत से लौटने पर बिना भोजन बनाए ही बाहर से पूछा, “क्या अभी तक खाना नहीं बना ?” उसके आश्चर्य की सीमा न रही, जब अंदर से एक युवती ने उत्तर दिया, “खाना तो कब का तैयार है।” चाउरेन को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने सोचा कि उसे भ्रम हो गया है। उसने निश्चय करने के लिए फिर कहा, “क्या खाना तैयार है ?”
“कहा तो है कि तैयार है ।” उसी युवती का स्वर था।
चाउरेन दौड़कर अंदर गया। उसने देखा कि लकड़ी की युवती अपने स्थान पर नहीं है और उसी जैसी एक सुंदर युवती रसोई में काम कर रही है। उसने उससे पूछा, “तुम कौन हो ?”
युवती बोली, “मैं वही लकड़ीवाली युवती हूँ, जिसे तुमने बढ़ई से बनवाया है । तुम्हारी भावना के कारण मैं सजीव हो गई हूं किंतु मैं केवल खाना बनाने के समय ही सजीव रहूंगी। बाकी समय लकड़ी की मूर्ति बनकर खड़ी रहूँगी।”
चाउरेन खुश हुआ। अब उसे सचमुच बना-बनाया खाना मिलने लगा और वह आराम से दिन बिताने लगा। धीरे-धीरे यह बात बढ़ई के कानों तक पहुँच गई। वह सच जानने के लिए चाउरेन के घर आया। उसने देखा कि सचमुच ही एक युवती खाना बना रही है। जब उसने देखा कि उसी के द्वारा बनाई गई लकड़ी की युवती सजीव हो गई है तो उसके मन में दुर्भावना पैदा हो गई।
वह सोचने लगा कि इतनी सुंदर युवती उसके घर में होनी चाहिए। वह अपने घर लौटकर गया। उसने अपनी पत्नी को तलाक देकर घर से निकाल दिया । फिर वह चाउरेन के पास आया। उसने कहा, “यह लकड़ी की युवती मैंने बनाई थी। तुम इसे मुझे दे दो। मैं तुम्हारे लिए इससे भी सुंदर लकड़ी की युवती बनाकर दूँगा।”
चाउरेन सीधा-सादा किसान था। उसने वह युवती बढ़ई को वापस कर दी। बढ़ई उसे लेकर अपने घर वापस आया। अगले दिन उसने चाउरेन की तरह बाहर से पूछा, “क्या खाना तैयार है ?”
किंतु कोई उत्तर नहीं मिला। वह अंदर गया। उसने देखा कि लकड़ी की मूर्ति खड़ी है। बेचारे ने अपने हाथ से खाना बनाकर खाया। आदत न होने के कारण चावल जल गए और धुआँ आंखों में भर गया। दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ। जब वह तंग आ गया तो उसने लकड़ी की उस युवती को फिर से चाउरेन को लौटा दिया।
चाउरेन के घर जाते ही लकड़ी की वह युवती हमेशा के लिए सजीव हो गई। चाउरेन ने उसके साथ विवाह रचा लिया और सुखपूर्वक रहने लगा। बढ़ई लालच और मूर्खता के कारण अपनी पत्नी को भी खो बैठा।
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