( श्रीवास्तव सरिता )
एक बादशाह की आदत थी, कि वह भेस बदलकर लोगों की खैर-ख़बर लिया करता था,एक दिन अपने वज़ीर के साथ गुज़रते हुए शहर के किनारे पर पहुंचा तो देखा एक आदमी गिरा पड़ा हैl
एक बादशाह की आदत थी, कि वह भेस बदलकर लोगों की खैर-ख़बर लिया करता था,एक दिन अपने वज़ीर के साथ गुज़रते हुए शहर के किनारे पर पहुंचा तो देखा एक आदमी गिरा पड़ा हैl
बादशाह ने उसको हिलाकर देखा तो वह मर चुका था ! लोग उसके पास से गुज़र रहे थे, बादशाह ने लोगों को आवाज़ दी लेकिन कोई भी उसके नजदीक नहीं आया क्योंकि लोग बादशाह को पहचान ना सके ।
बादशाह ने वहां रह रहे लोगों से पूछा क्या बात है? इस को किसी ने क्यों नहीं उठाया? लोगों ने कहा यह बहुत बुरा और गुनाहगार इंसान है ।।
बादशाह ने कहा क्या ये "इंसान" नहीं है?
और उस आदमी की लाश उठाकर उसके घर पहुंचा दी, और उसकी पत्नी को लोगों के रवैये के बारे में बताया ।।।
उसकी पत्नी अपने पति की लाश देखकर रोने लगी, और कहने लगी "मैं गवाही देती हूं मेरा पति बहुत नेक इंसान है"!!!!
इस बात पर बादशाह को बड़ा ताज्जुब हुआ कहने लगा "यह कैसे हो सकता है? लोग तो इसकी बुराई कर रहे थे और तो और इसकी लाश को हाथ तक लगाने को भी तैयार ना थे?"
उसकी बीवी ने कहा "मुझे भी लोगों से यही उम्मीद थी, दरअसल हकीकत यह है कि मेरा पति हर रोज शहर के शराबखाने में जाता शराब खरीदता और घर लाकर नालियों में डाल देता और कहता कि चलो कुछ तो गुनाहों का बोझ इंसानों से हल्का हुआ,
और रात में इसी तरह एक बुरी औरत यानी वेश्या के पास जाता और उसको एक रात की पूरी कीमत देता और कहता कि अपना दरवाजा बंद कर ले, कोई तेरे पास ना आए घर आकर कहता ख़ुदा का शुक्र है,आज उस औरत और नौजवानों के गुनाहों का मैंने कुछ बोझ हल्का कर दिया, लोग उसको उन जगहों पर जाता देखते थे,
मैं अपने पति से कहती "याद रखो जिस दिन तुम मर गए लोग तुम्हें नहलाने तक नहीं आएंगे,ना तुम्हारी अर्थी को कंधा देने आएंगे । वह हंसते और मुझसे कहते कि घबराओ नहीं तुम देखोगी कि मेरी अर्थी वक्त का बादशाह और नेक लोग उठाएंगे....
यह सुनकर बादशाह रो पड़ा और कहने लगा मैं बादशाह हूं, कल हम इसको नहलायेंगे, इसकी अर्थी को कंधा देंगे और इसका दाह संस्कार भी करवाएंगेl
आज हम बज़ाहिर कुछ देखकर या दूसरों से कुछ सुनकर अहम फैसले कर बैठते हैं अगर हम दूसरों के दिलों के भेद जान जाएं तो हमारी ज़बाने गूंगी हो जाएं,
किसी को गलत समझने से पहले देख लिया करें कि वह ऐसा है भी कि नहीं? और हमारे सही या ग़लत कहने से सही ग़लत नहीं हो जायेगा और जो ग़लत है वो सही नहीं हो जायेगा ।
हम दूसरों के बारे में फैसला करने में महज़ अपना वक़्त ज़ाया कर रहे हैं..बेहतर ये है कि अपना कीमती वक़्त किसी की बुराई करने की बजाय अच्छी सोच के साथ परोपकार में लगाएं...
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