('अंगामी' नागा कथा)
एक बार एक शिकारी ग्रामीणों को साथ लेकर जंगल में शिकार के लिए गया। उसके पास एक बन्दूक थी जिससे उसने अनेक पशुओं का शिकार किया। प्रतिदिन शिकार करते हुए उससे एक भी निशाना नहीं चूका।
यद्यपि गाँव वालों ने स्वयं एक भी पशु का शिकार नहीं किया था, फिर भी उन्होंने शिकारी को उसका भाग देने से मना कर दिया। अतः जब उस शिकारी से ग्रामीणों ने एक बड़ी हिरणी को मारने के लिये कहा तो शिकारी ने जानबूझ कर निशाना ग़लत साधा, और उस हिरणी को छोड़ दिया।
इसके पश्चात गाँव वालों से निराश होकर उसने गाँव छोड़ दिया और यात्रा पर चल दिया। रास्ते मे एक साँप मिला जिसने भिखारी का रूप धारण कर लिया और शिकारी से पूछा कि वह कहाँ जा रहा है। शिकारी ने उत्तर दिया, 'मैं यात्रा पर जा रहा हूँ।' भिखारी बोला, 'मैं भी यात्रा पर जा रहा हूँ। तो क्यों न हम साथ चलें?' शिकारी ने भिखारी को साथ लिया और वे चल दिये।
कुछ आगे जाकर उन्हें एक मनुष्य मिला, वास्तव में वह एक मेंढक था जो मनुष्य का रूप धारण करके सामने आया था। उसने उन यात्रियों से पूछा कि वे कहाँ जा रहे हैं। भिखारी ने उत्तर दिया, 'हम यात्रा पर जा रहे हैं।' और इस प्रकार मानव रूपी मेंढक को साथ लेकर वे पुनः चल दिये।
थोड़ा आगे राह में वही हिरणी मिली, जिसे शिकारी ने नहीं मारा था, उसने सुन्दर कन्या का रूप धारण कर लिया और नदी के किनारे बाल सुखाते हुए उनसे पूछा, 'तुम सब लोग कहाँ जा रहे हो?' वे बोले, ' हम यात्रा पर जा रहे हैं।' यह सुनकर वह सुन्दरी बोली, 'मैं भी यात्रा करूँगी।' इस प्रकार उन्होंने उसे भी साथ लिया और शिकारी, सुन्दरी, मनुष्य और भिखारी, चारों साथ चल दिये।
इस प्रकार साथ चलते हुए वे सब एक ऐसे देश में पहुँचे जहाँ का राजा क्रूर था। उन्होंने उसी देश में बसने का निर्णय लिया। शिकारी ने उस सुन्दरी से विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात काम करने की दृष्टि से वह साहब (राजा) के पास गया। राजा ने उसे आदेश दिया कि एक दिन के अन्दर उसे पानी से भरा खेत तैयार करके धान की फ़सल उगाना है अन्यथा उसे मृत्यु दण्ड दिया जाएगा।
शिकारी इस आदेश से बहुत दुखी हुआ। घर लौटकर निराशा भरे स्वर में उसने पत्नी को इस बारे में बताया। पत्नी ने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा, 'ठीक है, मैं इस आदेश को पूरा कर दूँगी। तुम अपने दाओ से मेरा सिर काट दो।' पहले तो शिकारी ने ऐसा करने से मना कर दिया किन्तु पत्नी कि हठ के आगे उसे झुकना पड़ा और उसने पत्नी क सिर काट दिया। किन्तु इस कार्य से उसे इतना दुख और ग्लानि हुई कि वह घर से दूर चला गया और एकान्त में पूरे दिन रोता रहा।
दूसरी ओर मायावी हिरणी ने खेत बनाकर उसमे चावल उगाया, फिर् वह घर लौट आई और खाना बनाकर अपने पति की प्रतीक्षा करने लगी। जब काफ़ी समय बीत गया और वह घर न लौटा तो पत्नी ने मेंढक-मानव तथा भिखारी को उसको खोज कर लाने का आदेश दिया। वे दोनों उसे खोजने निकले, कठिनाई से शिकारी को खोज सके, किन्तु वह घर नहीं आना चाहता था। अन्ततः वे उसे उठा कर घर ले आए।
अपनी पत्नी को पुनः जीवित देखकर वह चकित रह गया। पत्नी ने उससे पूछा, 'तुम घर क्यों नहीं आ रहे थे?' उसने बताया, 'क्योंकि मैंने तुम्हारी हत्या कर दी थी, अतः मैं बहुत दुखी था, लेकिन तुम यहाँ पुनः कैसे पहुँची?' पत्नी ने कोई उत्तर नही दिया, उसने उन सब के साथ खाना खाया और फिर शिकारी से बोली, 'एक बार तुमने गोली न मारकर मेरी प्राण रक्षा की थी, और आज मैंने तुम्हारी प्राण रक्षा की है।' ऐसा बोलकर वह पुनः अपने असली रूप में आ गई, और हिरणी बनकर जंगल में भाग गयी। मानव पुनः मेंढक बनकर पानी में कूद गया। भिखारी भी साँप का रूप लेकर झाड़ियों में ग़ायब हो गया। शिकारी पुनः अकेला यात्रा पर चल दिया।
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