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इतिवेन चिनासांगबा- नागा लोक-कथा

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('आओ' प्रेम कथा)

एक बार की बात है, चिनासांगबा नामक चोंगली खेल का युवक और मोंगसेन खेल की इतिवेन नामक युवति आपस मे बहुत प्रेम करते थे। किन्तु इतिवेन के माता-पिता इस विवाह के लिये तैयार नहीं थे क्योंकि चिनासांगबा बहुत ग़रीब था। जब इतिवेन युवतियों की टोली मे खेत जाती, तो चिनासांगबा मोरंग के चबूतरे पर बैठकर उसे निहारता। इतिवेन इसी समय उसे मिलने के लिये संकेत करती। खेत पर जाते समय इतिवेन की डलिया पीठ पर लटकी रहती और एक हाथ कंधे पर रखा होता। यदि वह अपनी दो उंगलियों से कमर पर लटकी डलिया को छूती तो चिनासांगबा के लिये संकेत होता कि वह उसके पीछे ना आये क्योंकि उसके माता-पिता भी खेत पर जा रहे हैं और वे उसकी निगरानी करेंगे। पर यदि वह डलिया पर एक उंगली रखती, तो अर्थ होता कि वह खेत पर अकेली जा रही है और चिनासांगबा उसके पीछे जंगल मे आ सकता है।

इस प्रकार समय-समय पर वे दोनो मिलकर पहाड़ियों, नदियों और गलियों मे घूमते जो आज भी उनकी याद मे प्रकाशमान है। चिनासांगबा सीधी खड़ी चट्टान की चोटी पर बैठ कर बांसुरी बजाता और वहाँ पोखर मे दोनो अपने कान मे पहनने के लिये फूल धोते। इन पोखरों को आज भी देखा जा सकता है। वे दोनो प्रेमी दया योग्य थे क्योंकि जीवित रहते उनका न हो सका। किन्तु यह उनका सौभाग्य था कि जड़ी-बूटी कान मे सदैव पहने रहने के कारण कोई प्रेतात्मा उनका वरण नहीं कर सकती थी।

एक दिन जंगल मे घूमते समय उन्होने स्वादिष्ट फलों से लदा वृक्ष देखा। उन्होंने फल तोड़े और खाये। उसी वृक्ष के नीचे इतिवेन ने स्वयं को अपने प्रेमी को समर्पित कर दिया। किन्तु उस दिन उसने एक भयानक भूल भी की थी कि वह अपनी रक्षक बूटी कान मे लगाना भूल गयी थी। इस कारण कुछ दिन पश्चात वह बहुत बीमार हो गयी, जब वह अपने माता-पिता के घर मे थी। चिनासांगबा ने सोचा कि यदि वह इतिवेन से सम्बन्ध स्थापित नहीं करता तो वह मर जाएगी। ऐसा सोचकर वह इतिवेन के लकड़ी से बने घर के नीचे घुस गया और इतिवेन के कमरे के फ़र्श के नीचे उस स्थान मे छेद बनाया जो इतिवेन के बिस्तर और दीवार के बीच मे था। इस प्रकार वह प्रतिरत्रि इतिवेन को फल और स्वादिष्ट भोजन पहुँचाने लगा।

इतिवेन के पिता को शक हो गया कि उसे बाहर से कुछ सहायता मिल रही है, अतः रात्रि मे जागकर उसने इतिवेन की निगरानी का निश्चय किया। वह हाथ मे मशाल लेकर आग के निकट छिप कर बैठ गया। जैसे ही उसे इतिवेन के खाने की आवाज़ सुनाई दी, उसने मशाल जलाकर देखा और उसे एक हाथ छिद्र मे ग़ायब होता दिखायी दिया। हाथ मे पहने हुए तावीज़ से उसने पहचान लिया कि वह चिनासांगबा है। उसने निर्णय किया कि इतिवेन के स्वस्थ होते ही वह उसका विवाह संगरात्स गाँव के तिनयोर से कर देगा।

इतिवेन ने विवाह रोकने का असफल प्रयत्न किया। विवाह के निश्चित दिन पर इतिवेन क पैर फिसला और वह गाँव की सड़क पर जा गिरी। वह वहीं पड़ी रही पर कोई भी उसे न उठा सका। अनेक बलिष्ठ युवकों ने उसे उठाने का प्रयत्न किया। अन्ततः चिनासांगबा आया और उसने अपनी बाँहों मे इतिवेन को सरलता से उठा लिया।

विवाह की इस अन्तिम घड़ी मे विवाह को रोकना सम्भव न था, अतः उसका विवाह कर दिया गया। किन्तु गाँव वालों ने यह निर्णय लिया कि इतिवेन विवाह के बाद कुछ रातों तक, पुरस्कार स्वरूप, चिनासांगबा के साथ सोएगी। निश्चित 'जैन्ना' रातें समाप्त होने पर दोनो अलग कर दिये गए पर अपने प्रेम को वे समाप्त न कर सके। परिणाम स्वरूप इतिवेन गम्भीर रूप से बीमार होकर मृत्यु को प्राप्त हो गई।

इतिवेन का पति तिन्योर, प्रेमी चिनासांगबा और पिता उसके शव को धुआँरने के लिए लकड़ी काटने गए। संयोग से वे उसी पेड़ को काट रहे थे जिसके नीचे इतिवेन और चिनासांगबा का पहला प्यार हुआ था। उन्होने वृक्ष के तीन टुकड़े किये और घर ले चले। चिनासांगबा ने वृक्ष का सबसे भारी और बड़ा भाग उठा रखा था। उसकी शक्ति देखकर इतिवेन के पिता को बहुत आत्मग्लानि हुई कि उसने इतिवेन का विवाह इतने बलशाली युवक से क्यों नहीं किया।

छः दिन बाद इतिवेन के विरह में चिनासांगबा की भी मृत्यु हो गई। उसके माता-पिता ने परम्परागत रूप से उसके शव को धुआँरने के लिये अगले कमरे मे रखा। तभी एक अचम्भा घटित हुआ - सब गाँव वालों ने उन दोनो के शव से उठते हुए धुएं को आकाश मे मिलते हुए देखा। इस से उन्हें ज्ञात हुआ कि वे दोनो वास्तविक प्रेमी थे। उन दोनो के शवों को धुआँरने के बाद 'शव-चबूतरे' पर साथ साथ लिटा दिया गया।

कुछ दुष्ट व्यक्तियों ने शवों के बीच में घास का एक बारीक सा तिनका रख दिया। उस रात इतिवेन अपने पिता के सपने में आई और उसने कहा कि उन दोनो के बीच एक विशाल वृक्ष आ गया है जिस कारण वे मिल नहीं पा रहे हैं। अगले दिन प्रातः इतिवेन के पिता ने उस तिनके को खोजकर उनके बीच से हटा दिया।

इसी प्रकार किसी शैतान व्यक्ति ने उन दिनि शवों के बीच बाँस की खोखली कोपल में पानी डालकर रख दिया। उस दिन रात इतिवेन पुनः अपने पिता के सपने में आई और बोली कि एक विशाल नदी उसे चिनासांगबा से मिलने से रोक रही है। अगले दिन उसके पिता ने वह बाँस हटा दिया। इसके बाद वह सपने में कभी नहीं आई और अन्ततः उन दोनो प्रेमियों का सदा के लिये मिलन हो गया।

इसलिये 'आओ' लोग कहते हैं कि यदि एक युवक और युवति तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध विवाह करना चाहते हैं तो उन्हें समझाना मूर्खता है।

इतिवेन के पिता के सपनो में आकर आत्मिक कष्टों का वर्णन करना, नागा की आत्मा की धारणा को दर्शाता है, जिसके अनुसार आत्मा मानव शरीर की एक अतिसूक्षम प्रतिकृति मानी गई है।

(खेल=किसी भी जनजाति के अन्तर्गत वर्ण विभाजन में प्रत्येक विभाजित वर्ण)

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