(कछारी नागा कथा)
(उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में भूकम्प अत्याधिक मात्रा में आते हैं। अतः कछारी नागा आदिवासियों में भूकम्प को लेकर लोककथा का होना स्वभाविक है। कछारी नागा भूकम्प के कारण को लेकर यह कथा कहते हैं -)
प्राचीन काल की बात है, धरती पर एक शक्तिशाली राजा था। उसे विस्तृत शक्तियां तथा अधिकार प्राप्त थे। मृत्यु के पश्चात वह भगवान 'सिबराई' (भगवानों मे सर्वोच्च) के पास पहुँचा तथा भगवान के घर रहने का उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ। कुछ समय पश्चात उसने भगवान सिबराई की बुद्धिमान तथा दैवीय शक्ति प्राप्त कन्या से विवाह कर लिया। शीघ्र ही वह भी भगवान सिबराई के समक्ष शक्तिशाली हो गया।
एक स्थान पर दो समान शक्तिशाली व्यक्तियों का परिणाम अधिकांशतः संघर्श होता है, इस कारण स्वर्ग में अव्यवस्था तथा शान्ती व्याप्त हो गयी। स्वर्ग में पुनः शान्ती लाने का एक ही उपाय था कि एक व्यक्ति अपने अधिकार छोड़ दे। किन्तु दोनो में से कोई भी त्याग करने के लिये तैयार न था। अन्त में यह निश्चय हुआ कि सिबराई तथा उसका जमाई, दोनो में द्वन्द युद्ध होगा, पराजित योद्धा को धरती के मध्य में बन्दी बना दिया जाएगा तथा विजेता को स्वर्ग का राज्य प्राप्त होगा।
दोनों मे निश्चित दिन युद्ध आरम्भ हुआ, और बहुत लम्बे समय तक चलता रहा। परिणाम शंकित थे, सिबराई हार सकता था। स्थिति की गम्भीरता को भांपते हुए, सिबराई की पुत्री ने युद्ध में हस्थक्षेप किया, उसने अपने सिर का बाल तोड़ा, जो बीस फुट लम्बा था, और अपने पति के पैर बांध दिये। तब सिबराई अपने प्रतिद्वन्दी को बन्धक बनाने में सफल हो सका। सिबराई ने उस राजा के हाथ पैर बाँध कर उसे धरती के मध्य में डाल दिया।
जब कभी भी वह राजा स्वयं को बन्धन से मुक्त करने का प्रयास करता है भूकम्प आते हैं।
कछारी नागा प्रातःकाल और शाम ढलने पर आने वाले भूकम्प को अशुभ तथा बीमारी का प्रतीक, तथा दिन में आने वाले भूकम्प को शुभ मानते हैं।
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