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मंगला -सुभद्रा कुमारी चौहान

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उस दिन जब बी.ए. का रिजलट निकला और मंगला, पास हो गयी अच्छे डिवीजन और अच्छे नम्बरों के साथ तो मुझे कितनी प्रसन्नता हुई उस दिन। मंगला, एक मजदूरनी की बेटी, सवयं भी अपनी माँ के साथ मजदूरनी की तरह काम करने में कभी संकोच न करती थी, फर्स्ट डिवीजन लेकर पास हुई । मैंने उसी खुशी में एक दिन मंगला से कहा-बेटी, अब तुम बी.ए. पास हो गयी । अब मैं तुम्हारी शादी तय करना चाहती हूँ कोई योग्य साथी तुम्हारे लिए खोज सकी, तो मैं बिल्कुल निश्चिन्त हो जाऊं । संतान के प्रति माँ-बाप की जो जिम्मेदारी होती है वह पूरी हो जावे ।

उस दिन मंगला ने इस बात को मजाक समझा । किन्तु इस चर्चा को गम्भीर होते देखकर वह मुझ से बोली-अम्माँ, तुम मेरे विवाह की चिन्ता मत करो । मैं विवाह नहीं करना चाहती । यह तो जरूरी नहीं है कि सभी लड़कियाँ शादी करें । मैं तो तुम्हारे ही साथ रह के तुम्हारी ही सेवा करना चाहती हूँ । अभी तक तुम ने कष्ट उठाया है, अब मैं तुम्हारे लिए कुछ करूँगी, तुम्हें आराम से रखूँगी। जब मैं कुछ करने-धरने के लायक हुई, तब मैं विवाह करके कहीं चली जाना नहीं चाहती।

एक माँ अपने बच्चे से इससे अधिक क्या कुछ और चाहती है ? सच, मेरा मातृत्व सफल हो गया । मैं एक योग्य संतान की माँ हूँ, इससे मुझे बड़ा सन्तोष मिला । इस बेटी से अलग होकर मुझसे भी न रहा जायगा, यह मैं जानती थी । पर इसी बीच सुदर्शन से भी कई बार मिल चूकी थी सच तो यह है कि मैं सुदर्शन को भी प्यार करने लगी थी। सूदर्शन मेरी मंगला के लिए जितना अच्छा साथी बन सकेगा, उतना अच्छा लड़का शायद ही मैं कहीं खोज सकूँ । इसीलिए चाहती थी, मंगला यह विवाह स्वीकार कर ले । मैंने मंगला से कहा-बेटी, मेरा विश्वास है कि शादी तो तुम्हें करनी चाहिए । मैं सदा जीती न रहूँगी और तुम्हें तब एक साथी का अभाव खटकेगा-और सच तो ये है बेटी कि मैं तुम्हें जहाँ ब्याहने जा रही हूँ, वहाँ तुम पर कोई बन्धन न रहेगा । तुम जब चाहोगी तभी मेरे पास आ सकोगी । यहाँ रहना या ससुराल जाना तुम्हारी इच्छा पर रहेगा!

बेटी ने लापरवाही से हंसकर जवाब दिया था-यह सब अम्माँ, विवाह से पहले की बातें हैं ।विवाह के बाद पुरुष, पत्नी को अपनी सम्पत्ति समझने लगता है।पति चाहे जितना पढ़ा-लिखा विद्वान हो, पब्लिक पलेटफार्म पर खड़ा होकर स्त्री को समान अधिकार और स्वतंत्रता देने के विषय में चाहे जितनी लम्बी-लम्बी सपीचें झाड़े पर घर के अन्दर पैर रखते ही पुरुष, पुरुष हो जाता है । स्त्री यदि उसकी इच्छाओं को अपनी इच्छा न बना ले, उसके इशारे पर आँख-कान बन्द करके न चले, तो खैर नहीं । पास-पड़ोस के घरों में इन शिक्षित परिवारों में भी जो कुछ होता है, वह जानती हो । यह सच जान बूझकर भी तुम क्यों चाहती हो माँ, कि मैं विवाह कर लूँ ? फिर तुम मेरे स्वभाव को भी जानती हो । मैं किसी के इशारे पर आँख-कान बन्द करके नहीं चल सकती। मैं किसी की इच्छा को अपनी इच्छा नहीं बना सकती और सच बात यह है कि तुम्हें छोड़ कर मुझसे कहीं जाया न जायगा । तुम जिसके साथ मुझे ब्याहोगी वह मुझे अपने साथ जरूर ले जाना चाहेगा, अभी चाहे कुछ भी कहे ।

मैंने कहा-यह मैं समझती हूँ बेटी, पर सुदर्शन ऐसा नहीं करेगा। वह बहुत ही भला और नेक लड़का है । उसने मुझसे वादा किया है कि वह तुम्हारी इच्छा पर कभी अपनी इच्छाओं को न लादेगा।

मंगला कुछ गंभीर होकर बोली जो तुम चाहो माँ, वह करो । मैंने जैसे सदा तुम्हारी बात मानी है, उसी तरह तुम्हारी इस बात को भी मान लूंगी। परन्तु, मैं खुद तो शादी बिल्कुल नहीं करना चाहती । और मंगला चली गयी । मेरे लिए एक प्याला चाय तैयार करने ।

मैं बड़ी देर तक मंगला की बातों पर विचार करती रही और मेरी आँखो के सामने अतीत के, न जाने कितने दु:ख चित्र खिंच गये । सोचा, नहीं मंगला की इच्छा के विरुद्ध उसका विवाह न करूँगी। कल मैं सुदर्शन से साफ-साफ कह दूँगी । वह धनी है, शिक्षित है, सुंदर है, विनयी है । उसके लिए लड़कियों की कमी न रहेगी। बहुत-सी लड़कियां मिलेंगी । मेरी मंगला मेरी रहेगी।

दूसरे दिन वादे के अनुसार सुदर्शन आया। मैंने उसे प्यार से बैठाला । उसे देखते ही मेरा विवाह न करने का निश्चय कुछ हिल- सा गया । परन्तु मैं सम्हली। मैंने कहा-सुदर्शन, जैसा तुम जानते हो, विवाह मैं खुद तो करना चाहती हूँ पर मंगला विवाह के लिए तैयार नहीं है ।मुझे छोड कर जाने की कल्पना से भी वह सिहर उठती है और विवाह के बाद ससुराल उसे जाना ही पड़ेगा । यही कारण है वह विवाह नहीं करना चाहती ।

सुदर्शन का चेहरा उतर गया । वह बोला-ऐसी बात तो नहीं है कि विवाह के बाद उन्हें आप को छोड़ कर जाना ही पड़ेगा। जाना न जाना तो उनकी इच्छा पर रहेगा। और वैसे तो विवाह के बाद भी वह चाहे तो आपके ही पास रह सकती है । मुझे कोई शिकायत न होगी।
मैंने पुछा-तुम्हारी माँ को भी कुछ न लगेगा? वह भी रहने देंगी?
सुदर्शन बोला-अम्माँ मेरे किसी मामले में दखल नहीं देतीं।
मैंने कहा-सुदर्शन, यह सब बात मैं मंगला से कह चुकी हूँ ।वह कहती है कि ब्याह के पहले लोग दूसरे स्वर से बोलते हैं और विवाह के बाद उनका स्वर बदल जाता है ।

सुदर्शन कुछ हताश-सा होकर बोला-वैसे आप लोग मुझ पर विश्वास ही न करें तो कोई चारा नहीं है, पर मैं कहता हूँ कि जो कुछ कहता हूँ उस पर अमल करूँगा । आप यदि मेरी परीक्षा लेना चाहें तो मैं बीस साल तक केवल इस आशा पर रह सकता हूँ कि मंगला मुझसे विवाह करेगी परन्तु, यदि यह विवाह न हुआ, तो मैं बहुत दु:खी जरूर हो जाऊंगा । दु:खी होने पर भी मुझसे कोई अपकार न होगा । मैं रासते से अलग हो जाऊंगा।

और मेरा माँ का हृदय जो ठहरा, मैं द्रवित हो उठी ।मैंने कहा-अब तुम्हें, कुछ और कहने की ज़रूरत नहीं है । मैं प्रयत्न करूँगी । तुम दुःखी न होना । और तुम्हें बीस साल तक ठहरने भी न दूँगी।

सुदर्शन चला गया । दूसरी सुबह मंगला से चाय पीते-पीते मैंने कहा- मंगला बेटी, मैं चाहती हूँ कि तुम यह विवाह स्वीकार कर लो । मेरा यह थका तन और थका मन न जाने किस घड़ी बुझ जाय। तुम किसी योग्य साथी के साथ रहोगी तो मैं शाँति से मर सकूँगी, नहीं तो मरने के बाद भी शाँति न पा सकूँगी।
और मंगला, मेरी मंगला ने कहा-जिसमें तुम्हें शाँति मिले माँ, उसी में मेरा सुख है । तुम जो चाहो करो।

फिर इस प्रकार विवाह तय हुआ और हो गया । विवाह के समय मंगला ससुराल से दो-चार दिन में ही लौट आयी थी और वह दो-तीन दिन काम की अधिकता तथा मेहमानों की भीड़-भाड़ में कैसे निकल गये कुछ जान नहीं पड़े ! पर आज तो यह सूना-सूना घर काट खाने को मुंह बाय खड़ा है ! हर पेड़, पत्ती और फल जिधर आँख उठाती हूँ, हर जगह मंगला ही मंगला ! मंगला के अतिरिक्त और कुछ सूझता ही नहीं!
सोचती हूँ यदि मैं भी चिड़िया होती तो अपनी मंगला की खोज में किसी तरफ़ उड़ जाती।

(अधूरी रचना)

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