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याओजोमा का अंत- मणिपुरी लोक-कथा

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याओजोमा राक्षस की लोककथा मणिपुरवासियों में बहुत प्रचलित है। प्राय: बूढ़ी नानी या दादी बच्चों को यह कहानी सुनाती हैं। आप भी सुनें।

एक बार वृद्ध दंपती अपने खेत में मीठे आलू बो रहे थे। बंदरों का एक दल उन्हें देख रहा था। मीठे आलुओं के स्वाद ने बंदरों को झूठ बोलने पर उकसाया। एक बंदर उनसे बोला, "दादी, सारे गाँव वाले आलुओं को उबालकर बो रहे हैं। ऐसा करने से फल जल्दी व अच्छी होती है।"

बेचारी दादी, बंदर की बातों में आ गई। उसने सारे आलू निकाले और उबाल लाई। फिर बूढ़े-बुढ़िया ने उन्हें खेत में बो दिया। बंदरों को तो मनचाही मुराद मिल गई। एकांत पाते हो उन्होंने सारे आलू खोद लिए और दावत उड़ाई।

अगले दिन बूढ़े-बुढ़िया ने खेत की दशा देखी तो माथा पीट लिया। बूढ़े ने दुष्ट बंदरों को सबक सिखाना चाहा। उसने एक मोटा डंडा लिया और मरने का बहाना बनाकर लेट गया। योजना के अनुसार बुढ़िया चीखती-चिल्लाती बंदरों के पास पहुँची।

'हाय रे! मैं तो लुट गई। तुम्हारे दादा चल बसे। चलकर अंतिम दर्शन कर लो। उनका अंतिम संस्कार तो करवा दो।'

सभी बंदर मन ही मन खुश हो गए। यदि बूढ़ा जिंदा रहता तो शायद बदला लेने की कोशिश करता, अच्छा हुआ मर गया।

जब सभी बंदर बूढ़े को घेरकर बैठे तो बुढिया ने सभी दरवाजे पक्की तरह से बंद किए और बंदरों से बोली, 'तुम लोग जोर-जोर से रोओ, बूढ़े की आत्मा को शांति मिलेगी।'

रोने की आवाज सुनते ही बूढ़ा उठ बैठा और बंदरों को पीट-पीटकर मार डाला। एक छोटा बंदर बिस्तर के नीचे छिप गया था। वह बच गया। भागते-भागते वह धमकी दे गया, 'मैं याओजोमा से तुम्हारी शिकायत करूँगा।'

बेचारे बूढ़े-बुढ़िया ने अपनी जान बचाने के लिए सभी बंदरों का मांस पकाया और राक्षस की प्रतीक्षा करने लगे। याओजोमा जब भी उन्हें मारने आता, वे उसे बंदर का पका मांस खाने को दे देते। वह लौट जाता किंतु एक दिन मांस खत्म हो गया।

बूढ़े ने दीवार में एक छेद किया और तेज चाकू लेकर कमरे में छिप गया। भीतर से बुढ़िया ने दरवाजे लगा लिए। याओजोमा आया तो बुढ़िया बोली, “अरे, मैं तो बुखार में पड़ी हूँ, बूढ़ा घर में है नहीं। तुम छेद में से हाथ डालकर मांस उठा लो।"

याओजोमा ने जैसे ही दोनों हाथ दीवार से भीतर डाले, बूढ़े ने तेज चाकू से उन्हें काट दिया। हथकटा याओजोमा दुम दबाकर भागा। बूढ़े-बुढिया ने चैन की सांस ली। बुढ़िया बोली- 'वह कभी भी लौट सकता है। उसका पक्का इंतजाम करना होगा।'

चतुर बूढ़े ने याओजोमा को खत्म करने के लिए कुछ जंगली चींटियाँ, खतरनाक मक्खियाँ, एक अंडा, चाकू, साँप व चीता लिया।
रात होते ही वह राक्षस की गुफा पर पहुँच गए।

याओजोमा ज्यों ही गहरी नींद सोया। जहरीली चींटियाँ उसे काटने लगीं। जैसे ही उसने कपड़ा झटका मक्खियों ने उस पर हमला बोल दिया। उसने मक्खियाँ भगाने के लिए आग जलानी चाही तो मुँह पर एक अंडा फूट गया।
बौखलाकर वह दरवाजे के पास पहुँचा तो तेज धार वाले चाकू से पाँव कट गया।
याओजोमा दर्द से बिलबिला उठा।

उसने पानी से मुँह धोने के लिए बाँस की नली उठाई तो उसमें पानी की जगह साँप निकला और उसे डस लिया।

बूढ़े ने अपनी चाल से याओजोमा के छक्के छुड़ा दिए। जब बह गुफा से बाहर निकलने लगा तो बूढ़े द्वारा लाया गया चीता उस पर झपट पड़ा। देखते-हो-देखते याओजोमा राक्षस खत्म हो गया।

बूढ़े ने सदा के लिए गाँववासियों को याओजोमा के आतंक से मुक्ति दिलवा दी।

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