इस समय हम तुमको उस समय की तरफ चलते हैं जब दुनिया बनी ही बनी थी। पहाड़ बढ़ रहे थे, नदियों ने बहना शुरू ही किया था और मैदान ओस से ढके हुए थे।
एक दिन दुनिया बनाने वाले ने उन सबको बुलाया जो सुन सकते थे और उन सबसे कहा — “सुनो जो अब मैं तुमसे कहता हूँ। मैं तुम लोगों को तुम्हारी पसन्द की आवाज देना चाहता हूँ,। ताकि जब तुम लोग काम कर रहे हो और इधर उधर घूम रहे हो तो तुम लोग आपस में बोल सको, बात कर सको। ”
सब पहाड़ दुनिया बनाने वाले के सबसे पास थे जहाँ वह आसमान में रहता था। सो जब दुनिया बनाने वाला धरती पर आया तो पहाड़ों की चोटियों के साथ साथ बहुत ज़ोर की आवाज करता आया।
पहाड़ों को वह आवाज बहुत अच्छी लगी और उन्होंने उन्हीं बादलों की सी गरज की आवाज में बोलना निश्चय कर लिया। इसी लिये आज पहाड़ जब हिलते हैं और धरती काँपती है तो हम उसी गरज की आवाज सुनते हैं।
हवा भी बहुत ज़ोर से बोलना चाहती थी पर वह ज़ोर से बोलना तो पहाड़ों ने ले लिया था तो हवा ने जब दुनिया बनाने वाले की सीटी की और झुनझुने की आवाजें सुनी तो हवा ने वे आवाजें नकल कर लीं।
नदी को दुनिया बनाने वाले की उँगलियों की हार्प पर संगीत बजाने की आवाज सुनायी पड़ी तो उसने वह संगीतमयी आवाज अपने बुलबुले उठने की आवाज में नकल करके मिला ली।
पेड़ों को दुनिया बनाने वाले की पोशाक की बाँहों के हिलने की सरसराहट की आवाज अच्छी लगी तो उन्होंने उसकी वह आवाज ले ली। चिड़ियों ने दुनिया बनाने वाले की बाँसुरी और गाने की आवाज सुनी तो उन्होंने उसकी वह आवाजें ले ली।
कुछ चिड़ियें जो गाने में अच्छी नहीं थीं उनसे जितना अच्छा हो सकता था वे चीखने, या काँव काँव करने, या फिर हू हू करने लगीं।
जो जीव जमीन पर रहते थे उन्होंने दूसरे किस्म की आवाजें बनानी सीख लीं – कोई भौंकता था तो कोई म्याऊँ बोलता था। कोई फुसफुसाता था तो कोई गुर्राता था। कोई बा बोलता था तो कोई कुहुकता था। कोई चिल्लाता था तो कोई गुनगुनाता था। मतलब यह कि सबने अपनी अपनी पसन्द की आवाजें बना लीं।
इन सबमें आदमी सबसे ज़्यादा होशियार निकला। वह इन सारी आवाजों को मिला कर बोल सकता था। वह न केवल जानवरों की आवाजों की नकल भी कर सकता था बल्कि वह अपनी अलग से भी आवाज बना सकता था।
आदमी ने इसे बात करने का नाम दिया। वह सोचता था कि केवल वह ही बात कर सकता है पर वह यह भूल गया कि जानवर उसकी तरह से तो बात नहीं कर सकते थे पर उनका बात करने का अपना तरीका है।
दुनिया बनाने वाला सबको आवाज दे कर बहुत खुश था। पर समुद्र के जीव आवाज नहीं पा सके। क्योंकि सारी किस्म की मछलियाँ पानी के अन्दर थीं इसलिये उनको यही पता नहीं चला कि उनके ऊपर धरती और आसमान में क्या हो रहा है।
उन्होंने पहाड़ों को गिरते हुए देखा और उनके हिलने को महसूस किया। उन्होंने हवा को तेज भागते हुए देखा पर वे उसकी सीटी की और झुनझुने की आवाज नहीं सुन पायीं।
उन्होंने चिड़ियों को और दूसरे जानवरों को अपना मुँह खोलते और बन्द करते हुए तो देखा तो पर उनकी चहचहाहट और गाना और वे आपस में क्या कह सुन रहे हैं यह नहीं सुन पायीं।
वे अपना सिर पानी के ऊपर निकाल कर सुन सकतीं थीं और यह जान सकतीं थीं कि बाहर क्या हो रहा हैं पर वे सब डरी हुईं थीं इसलिये वे पानी के अन्दर ही रहीं और बस अपने मुँह को खोलती और बन्द करती रहीं पर बोलना नहीं सीख सकीं।
कुछ लोग इस कहानी को यहीं खत्म कर देते हैं और कहते हैं कि “इसी वजह से मछली बात नहीं कर सकती। ” पर अगर तुम देखो तो कई बार उड़ती हुई मछलियाँ हवा में उछलती हैं और नाव में बैठे लोगों की बातें सुनने की कोशिश जरूर करती हैं।
पर वे खुद कोई बात नहीं कर सकतीं।
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