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माउई, आग लाने वाला: न्यूजीलैंड की लोक-कथा

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पृथ्वी का कुछ भाग जल के भीतर तथा कुछ भाग ऊपर होता है। यह वीर माउई ही है जिसने न्यूज़ीलैंड द्वीप को जल से ऊपर निकाला, जहां यह आजकल स्थित है। यह माउई ही है जिसने मछली फंसाने के कांटे का आविष्कार किया। माउई ही ने मनुष्य जाति को आग पैदा करने का उपाय बताया और माउई ही ने दिन को बड़ा बनाया ताकि लोगों को अधिक समय मिले और वे अपना काम भली-भांति कर सकें।

माउई का जब जन्म हुआ तो वह बहुत ही छोटा और कुरूप था। उसकी मां ने उसे समुद्रतट पर किसी सुनसान स्थान पर छोड़ दिया। समुद्र के देवताओं ने उस पर कृपा की और उसका पालन-पोषण किया। उसके पूर्वज टामानुईकीटेरेंगी ने स्वर्ग में शिक्षा देकर उसे बुद्धिमान बना दिया। जब वह युवावस्था को प्राप्त हुआ तो वह अपने परिवार की खोज-खबर लेने के लिए पृथ्वी पर आया। उसने अपने भाइयों को खेलते देखा। माउई के विकृत अंगों को देखकर वे हँसने लगे। माउई ने अपना नाम बताकर कहा कि वह उनका सबसे छोटा भाई है। उन लोगों ने इस पर विश्वास न किया। उसकी मां ने भी यही कहा कि तुम मेरे पुत्र नहीं हो।

माउई ने कहा, “आपने मुझे समुद्रतट पर छोड़ दिया था ।” मां को सहसा पिछली बातें याद हो आयीं। वह बोली-“हां, बेटे! मैं भूल गई थी। तुम मेरे पुत्र हो।”

माउई अपने परिवार में रहने लगा। एक दिन जब उसके भाई नाव में मछली का शिकार करने जाने लगे तो उसने भी साथ जाने का हठ किया परंतु उन्होंने उसे अपने साथ ले जाने से मना कर दिया। परंतु माउई कहां मानने वाला था! वह छिपकर चुपचाप उनका पीछा करने लगा।

माउई के भाइयों के पास मछली पकड़ने का कांटा न था। स्वर्ग में अपने पूर्वजों से सभी विद्याओं में पारंगत होने के कारण, माउई ने अपने भाइयों को बताया कि मछली पकड़ने के लिए किस प्रकार कांटा लगाया जाता है। पर उसके भाइयों को माउई का साथ अच्छा न लगता और वे उसे अपने साथ कभी नाव में न ले जाते।

एक दिन माउई पहले से ही जाकर नाव में छिप गया और लकड़ी के तख्तों से उसने अपने को ढक लिया। जब उसके भाई समुद्र में कुछ दूर चले गए तो उनमें से एक ने कहा, “माउई को अपने साथ नहीं लाए, बहुत ही अच्छा किया ।” यह सुनकर माउई तख्तों के नीचे से बोला-“मैं तो यहां हूं।” और वह तख्तों को हटाकर बाहर निकल आया। जब उसके भाइयों ने देखा कि वे समुद्र में काफी दूर आ गए हैं और उसे लौटाना कठिन है, तो उन्होंने कहा-“हम लोग तुम्हें मछली पकड़ने के लिए कांटा न देंगे।”

यह सुनकर माउई चुप रहा। उसने अपनी पेटी के नीचे से जादू का कांटा निकाला जो उसके किसी पूर्वज के दांत का बना था। उसके भाइयों ने उसमें लगाने के लिए चारा भी देने से मना कर दिया। यह देखकर माउई ने अपनी नाक पर घूंसा मारा और खून निकाला। उस खून से अपने कांटे को तर करके उसने पानी में फेंक दिया। उसके भाइयों को क्योंकि कोई मछली न मिली थी, उन्हें विश्वास था कि माउई को भी कोई मछली न मिलेगी।

माउई का कांटा समुद्र में नीचे डूबता गया और समुद्र-तल में जाकर रुका। भाइयों ने कहा, “यहां मछलियां नहीं हैं। आओ, हम लोग कहीं और चलें ।” माउई केवल हँसता रहा और प्रतीक्षा करता रहा। थोड़ी देर बाद उसकी रस्सी में खिंचाव जान पड़ा। वह उसे मजबूती से पकड़े रहा। उसके भाइयों ने भी इसमें उसकी सहायता की। धीरे-धीरे कोई जीव ऊपर आता हुआ दिखाई पड़ा। जब वह जीव पानी के ऊपर आया तो माउई के भाई डर से चिल्लाने लगे क्योंकि जहां तक उनकी दृष्टि जाती थी उससे भी आगे तक वह जीव पानी पर तैर रहा था। यह बड़ा जीव “'टीकाएमाउई' नामक मछली अर्थात्‌ न्यूजीलैंड का द्वीप था। उस जीव की पीठ पर, मांस काटने के लिए माउई के भाई कूद पड़े परंतु वे असफल रहे। जहां-जहां उन लोगों ने चाकू से काटने का प्रयत्न किया वहां-वहां बड़े-बड़े खड्ड बन गए। जहां-जहां उन लोगों ने मछली को पीटा था, वहां-वहां उसकी खाल सिकुड़ गई और वे स्थान पर्वत बन गए। इस प्रकार न्यूज़ीलैंड द्वीप समुद्र से निकला जो अब माउरी लोगों का निवासस्थान है।

कुछ समय बीत जाने के पश्चात्‌, माउई ने अनुभव किया कि दिन बहुत छोटे होते हैं। दिन छोटे होने से, लोगों को भोजन आदि एकत्रित करने के लिए समय नहीं मिलता था। माउई ने निश्चय किया कि वह सूर्य को धीरे-धीरे चलने के लिए बाध्य करेगा ताकि दिन बड़े हों।

उसने अपने भाइयों से कहा, “आओ, हम लोग सूर्य को बांधकर उससे धीरे-धीरे चलने के लिए कहें ताकि लोगों को काम करने के लिए अधिक समय मिल सके ।”

भाइयों ने कहा, “सूर्य के निकट जानेवाला भस्म हो जाता है।"

माउई ने कहा-“तुम लोगों ने देखा है कि मैंने इस द्वीप को जल से बाहर निकाला है। मैं इससे भी आश्चर्यजनक काम कर सकता हूं।”

माउई की बातों को सुनकर उसके भाई सहमत हो गए। माउई ने अपनी बहन हीना के सिर से बाल लिए और हरा सन (पटुआ) भी लिया। अपने भाइयों की सहायता से उसने रस्सी बंटी और जादू के प्रभाव से रस्सी को बहुत ही मजबूत बना लिया। उस रस्सी से उन लोगों ने एक जाल तैयार किया। जाल बन जाने के उपरांत, माउई अपने भाइयों के साथ उस दिशा की ओर चल दिया जहां से सूर्य निकलता था। कई महीने लगातार चलने के बाद, वे संसार के किनारे पहुंचे और रात्रि के समय उन्होंने अपने जाल को उस सूराख पर रख दिया जहां से सूर्य निकला करते थे।

प्रातःकाल होने पर जब सूर्य निकला तो वह जाल में फंस गया और बहुत प्रयत्न करने पर भी वे जाल में से निकल न सके। माउई ने जाल को मजबूती से पकड़ रखा था। उसने एक रस्सा सूर्य की ओर फेंककर उसे लपेट लिया। सूर्य ने रस्से को तोड़ने का बहुत प्रयत्त किया परंतु वह टूट न सका।

माउई ने अपनी जादू की गदा उठायी और सूर्य पर प्रहार करने लगा। सूर्य अपनी किरणों से भीषण गर्मी फैलाने लगा। माउई के भाई तो डरकर भाग खड़े हुए, परंतु माउई सूर्य से लड़ता रहा।
अंत में सूर्य ने कहा, “अरे! तुम मुझे नहीं जानते । मुझसे व्यर्थ लड़ रहे हो ।”

माउई ने कहा, “तुम उदय होकर, आकाश में बड़ी शीघ्रता से एक किनारे से दूसरे किनारे पहुंच जाते हो। इसलिए दिन छोटा होता है और लोगों को अन्न इकट्ठा करने के लिए समय नहीं मिलता ।”

पर सूर्य ने माउई की बातों पर ध्यान न दिया। दोनों में लड़ाई होती रही। अंत में माउई ने क्रोधित होकर ज़ोर से प्रहार किया जिससे सूर्य घायल हो गया। घायल हो जाने पर सूर्य ने कहा, “मैं वचन देता हूं, अब मैं आकाश में धीरे-धीरे चलूंगा ।” यह सुनकर माउई बहुत प्रसन्‍न हुआ और उसने सूर्य को जाल से मुक्त कर दिया। सूर्य ने अपना वचन पूरा किया। उसी दिन से वह धीरे-धीरे चलने लगा और अब लोगों को दिन बड़ा हो जाने के कारण काफी समय मिलता है।

तब लोगों को आग पैदा करना नहीं आता था। अतः माउई ने यह निश्चय किया कि वह धरती के भीतर जाकर आग का पता लगायेगा। पृथ्वी में एक सूराख करके वह भीतर घुसा और अग्नि की माता माफुइक से मिला। उसने उससे एक चिनगारी मांगी। अग्नि की मां ने अपनी अंगुलियों के जलते नख में से एक नख उसे दे दिया। माउई उसे लेकर जब कुछ दूर चला गया तो उसने सोचा, यह तो आग है। आग उत्पन्न करने की विधि तो बताई ही नहीं। यह सोचते ही उसने आग को नदी में डाल दिया। वह लौटकर फिर अग्नि की मां के पास गया और चिनगारी ली। इस प्रकार वह नौ बार आग लाया और नदी में फेंकता गया। दसवीं बार जब वह गया तो आग की मां बहुत ही क्रोधित हुईं । गुस्से में भर उसने अपनी अंगुली का दसवां नख उस पर फेंका। जंगल के वृक्ष, घास आदि जलने लगे। जब आग बहुत ही भयंकर हो गई तो माउई ने वर्षा से प्रार्थना की । शीघ्र ही वर्षा होने लगी जिससे आग बुझ गई। अग्नि को बुझते देखकर उसकी मां ने कुछ चिनगारियों को वृक्षों में छिपा दिया। तभी से वृक्षों में आग छिपी हुई है और अब मनुष्य जान गया है कि किस प्रकार दो लकड़ियों को आपस में रगड़ने से आग उत्पन्न हो जाती है।

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