(राजकुमारी वुनछङ के विवाह हेतु बुद्धि-परीक्षा की कहानी)
सातवीं शताब्दी की बात थी, चीन के केन्द्रीय भाग में थांग राजवंश का राज्य था और तिब्बत में थुबो राजवंश का शासन। जब तिब्बती थुबो राज्य के राजा सोंगजान गाम्बो गद्दी पर बैठे, उस के सुशासन में तिब्बत की शक्ति बहुत बढ़ी और राजा सोंगजान गाम्बो थांग राजवंश के सम्राट से उस की पुत्री का हाथ मांगने के लिए अपना एक दूत थांग दरबार में भेजा। तिब्बती राजदूत का नाम गोलतुंगजान था, जो प्रकांड बुद्धिमता से देश भर में प्रसिद्ध था। थांग राजवंश के सम्राट ने अपनी पुत्री देने की शर्त पर पांच पहेलियां परीक्षा हेतु पेश कीं, जिस देश के दूत इन पहेलियों को हल करने में सफल हुए हो, तो सम्राट उसी राज्य को अपनी पुत्री देने को मंजूर होगा।
थांग सम्राट ने बुद्धि-परीक्षा के लिए जो पहली पहेली दी, वह थी कि पतले महीन रेशमी धागे को एक नौ मोड़ों वाले मोती के अन्दर से गुजार कर जोड़ दे। मोती के अन्दर नौ मोड़ों का छेद था, नर्म पतले धागे को उस के अन्दर घुसेड़कर निकालना कांटे का काम था, अन्य सभी राज्यों के दूतों को हार मानना पड़ा। लेकिन तिब्बती दूत गोलतुंगजान असाधारण बुद्धिमान था, उस ने धागे को एक छोटी चिउटी की कमर में बांधा और उसे मोती के छेद पर रखा और उस पर हल्की सांस का एक फूंक मारा, तो चिउटी धीरे धीरे मोती के अन्दर घुसकर दूसरे छोर से बाहर निकला, इस तरह मोती से धागा जोड़ने की पहेली हल हो गयी।
दूसरी बुद्धि की परीक्षा थी कि सभी राज्यों के दूतों को सौ सौ बकरी तथा सौ सौ जार शराब दिए गए और सौ बकरियों का वधकर उन्हें शराब के साथ खा डालने का हुक्म दिया गया। अन्य सभी दूत सौ बकरी और सौ जार शरीब खाने में असमर्थ साबित हुए और जल्दी ही शराब से चूर हो गए। तिब्बती दूत गोलतुंगजान ने अपने मातहतों को छोटे प्याले से धीमी गति से शराब पीते हुए बकरी का वधकर चमड़ा उतारने तथा पकाकर खाने को कहा। अंत में सम्राट का दिया काम अच्छा पूरा किया गया।
तीसरी परीक्षा थी कि सौ मादा घोड़ों और सौ बछेड़ों का संबंध पहचाना जाएगा। गोलतुंगजान ने सौ बछेड़ों को मादा घोड़ों से अलग कर बाड़ों में एक रात बन्द करवाया और उन्हें भूखे रहने दिया गया। दूसरे दिन, जब उन्हें बाहर छोड़ा गया, तो भूखे बछेड़ा अपनी अपनी मातृ घोड़े के पास दौड़ कर जा पहुंचा और मादा घोड़े का दूध पीने लगा, इस तरह सौ मादा घोड़ों और सौ बछेड़ों का रिश्ता साफ हो गया।
चौथी परीक्षा केलिए थांग सम्राट ने सौ लकड़ी के डंडे सामने रखवाए, दूतों को डंडों के अग्र भाग और पिछड़े भाग में फर्क करने का हुक्म दिया गया। गोलतुंगजान ने लकड़ी के डंडों को पानी में उड़ेल करवाया, लकड़ी के डंडे का अग्र भाग भारी था और पीछे का भाग हल्का, पानी में भारी भाग पानी के नीचे डूबा और हल्का भाग ऊपर निकला। अंततः तिब्बती दूत ने फिर परीक्षा पारित की।
अंतिम परीक्षा ज्यादा कठिन थी, थांग सम्राट ने अपनी पुत्री राजकुमारी वुनछङ को समान वस्त्र पहनी तीन सौ सुन्दरियों की भीड़ में खड़ा कराया और सभी दूतों से उसे अलग पहचाने को कहा। गोलतुंगजान ने राजकुमारी वुनछङ की एक बूढ़ी पूर्व सेविका से राजकुमारी की शक्ल सूरत पूछी और मालूम हुआ कि राजकुमारी के माथे पर भौंहों के बीच एक लाल मसा है। बूढी सेविका के रहस्योद्घाटन के मुताबिक तिब्बती दूत राजकुमारी वुनछङ को पहचाने में सफलता प्राप्त की।
अपनी अद्भुत बुद्धिमता से तिब्बती दूत गोलतुंगजान ने सभी परीक्षाओं में जीत ली और थांग सम्राट ने अपनी पुत्री को तिब्बत के थुबो राजा सोंगजान गाम्बो के साथ विवाह करने की सहमति दी और असंख्य संपत्तियों के साथ राजकुमारी को तिब्बत भेजा। तिब्बत में राजकुमारी वुनछङ ने वहां के विकास तथा बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए योगदान दिया था और अब तक उसे तिब्बती जनता के दिल में सम्मानित किया जाता है।
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