हर वर्ष दशहरे से पूर्व काशी की नाटक मंडली विजयनगर आती थी। सामान्यतः वे राजा कृष्णदेव राय तथा विजयनगर की प्रजा के लिए रामलीला किया करते थे। परंतु एक बार राजा को सूचना मिली कि नाटक मंडली विजयनगर नहीं आ रही है। इसका कारण यह था कि नाटक मंडली के कई सदस्य बीमार हो गए थे।
यह सूचना पाकर राजा बहुत दुःखी हुए, क्योंकि दशहरे में अब कुछ ही दिन बाकी थे। इतने कम दिनों में दूसरी नाटक मंडली की भी व्यवस्था नहीं की जा सकती थी। पास में दूसरी कोई नाटक मंडली नहीं होने के कारण इस वर्ष रामलीला होने के आसार दिखाई नहीं पड़ रहे थे जबकि दशहरे से पूर्व रामलीला होना विजयनगर की पुरानी संस्कृति थी। महाराज को इस तरह दुःखी देखकर राजगुरु बोले, 'महाराज, यदि चाहें तो हम रामपुर के कलाकारों को संदेश भेज सकते हैं?'
'परंतु, इसमें तो कुछ सप्ताह का समय लगेगा', राजा ने निराश स्वर में कहा।
इस पर तेनालीराम बोले, 'महाराज, मैं पास ही की एक मंडली को जानता हूं, वे यहां दो दिन में आ जाएंगे और मुझे विश्वास है कि वे रामलीला का अच्छा प्रदशन करेंगे।
यह सुनकर राजा प्रसन्न हो गए और तेनालीराम को मंडली को बुलाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई, साथ ही मंडली के रहने व खाने-पीने की व्यवस्था का भार भी तेनाली के ही सुपुर्द कर दिया गया। शीघ्र ही रामलीला के लिए सारी व्यवस्था होनी शुरू हो गई। रामलीला मैदान को साफ किया गया। एक बड़ा-सा मंच बनाया गया। नवरात्र के लिए नगर को सजाया गया।
रामलीला देखने के लिए लोग बहुत उत्सुक थे, क्योंकि इसके पूर्व काशी की नाटक मंडली के न आने की सूचना से वे काफी दुःखी थे, परंतु अब नई नाटक मंडली के आने की सूचना से उनका उत्साह् दोगुना हो गया था। महल के निकट एक मेला भी लगाया गया था।
कुछ ही दिनों में मंडली रामलीला के लिए तैयार हो गई। राजा, दरबारी, मंत्री व प्रजा प्रतिदिन रामलीला देखने आते। दशहरे के दिन की अंतिम कड़ी तो बहुत ही सराहनीय थी। मंडली में अधिकतर कलाकार बच्चे थे। उनकी कलाकारी देखकर लोगों की आंखों में आंसू तक आ गए।
दशहरे के पश्चात राजा ने कुछ मंत्रियों तथा मंडली के सदस्यों को महल में भोजन के लिए बुलाया। भोजन के पश्चात राजा ने मंडली के सदस्यों को पुरस्कार दिया। फिर वे तेनालीराम से बोले, 'तुम्हें इतनी अच्छी मंडली कैसे मिली?'
'बाबापुर से महाराज,' तेनालीराम ने उत्तर दिया।
'बाबापुर! यह कहां है? मैंने इसके विषय में कभी नहीं सुना', राजा ने आश्चर्य से पूछा।
'बाबापुर विजयनगर के पास ही है, महाराज।' तेनालीराम बोला।
तेनालीराम की बात सुनकर मंडली के कलाकार मुस्करा दिए। राजा ने उनसे उनके इस प्रकार मुस्कराने का कारण पूछा तो मंडली का एक छोटा बालक सदस्य बोला, 'महाराज, वास्तव में हम लोग विजयनगर से ही आए हैं। तेनाली बाबा ने तीन दिन में हमें यह नाटक करना सिखाया था इसलिए इसे हम बाबापुर की रामलीला कहते हैं।'
यह सुनकर राजा भी खिलखिलाकर हंस पड़े। अब उन्हें भी बाबापुर के रहस्य का पता चल गया था।
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