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रान्झू-फुल्मु: हिमाचली लोक-कथा

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(अधूरे प्रेम की अमर कथा)

हिमाचल एक ऐसी जगह है जहां एक एक कोने में प्यार की धारा बहती है। इसक पहाड़, नदियाँ, पेड़, हवा सबमें प्यार उमड़ता नजर आता है। यहाँ न जाने कितनी प्रेम कहानियों ने जन्म लिया और अमर हो गईं। इसी प्रदेश में चंबा जिला की एक प्रेम कहानी है जो सदियों से याद की जाती रही है। फूलमू रांझू वो प्रेमी जोड़ा है जिनका प्यार एक मिसाल बन गया और अब तक याद किया जाता है।

रांझू एक बड़े जमींदार का बेटा था जिसके पास बहुत सी भेड़ें और जमीन थी। वहीं फुलमू उस जमींदार की भेड़ें चराने वाला एक गडरिया था। एक बार काम करने गया गडरिया अपनी बेटी फुलमू को साथ ले जाता है और उसको एक जगह बिठाकर खुद काम में व्यस्त हो जाता है। रांझू फुलमू के साथ खेलने लग जाता है और उनके बीच दोस्ती हो जाती है। इसी खेल कूद के साथ फुलमू रांझू बड़े हो जाते हैं और दोनों मन न ही एक दूसरे को चाहने लग जाते हैं पर इजहार नहीं कर पाते। वो रोज एक दूसरे से मिलते थे और शरारतें किया करते थे।

एक दिन रांझू भेड़ें चराते हुए बांसुरी बजा रहा था और फुलमू भागते हुए उसके पास आती है और कहती है कि वो बांसुरी न बजाया करे। उसकी बांसुरी की वजह से वो कोई काम नहीं कर पाती और बेचैन हो जाती है। इसी के साथ रांझू भी अपनी भावनाएं फुलमू को बताता है और प्यार का इजहार कर बैठते हैं। दोनों रोज छिप छिपकर मिलते, रांझु बांसुरी बजाता और बहुत सी बातें करते। दोनों का मन किसी भी काम में नहीं लगता था।

दोनों एक दिन मिलने गए हुए थे और जीने-मरने की कसमं खा रहे थे तभी जमींदार का एक आदमी यह सब देख लेता है। वह जाकर सारी बात जमींदार को बता देता है। जमींदार रांझू को डांट देता है और उसको फुलमू से न मिलने को कहता है। उधर गांव वाले दोनों के बारे में बातें करने लग जाते हैं। फुलमू के पिता इस पर उसका घर से निकलना बंद कर देते हैं। एक दिन रांझू रात के अंधेरे में छिपकर फुलमू को मिलने चला जाता है जहां फुलमू रांझू को समझाती है कि ऐसे दोनों का मिलना सही नहीं है और उसको अपने घरवालों की बात मान लेनी चाहिए। फुलमू रांझू को कहती है कि वह खुद को संभाल लेगी, वह उसको भूल जाए और उसको चले जाने को कहती है।

रांझू के घर लौटते वक्त जमींदार को पता चल जाता है और वह रांझू को एक कमरे में कैद कर देता है। अगले दिन जमींदार पंडित को बुलाता है और रांझू की शादी की बात कहता है। पंडित दूसरे किसी गांव के जमींदार की बेटी के बारे में बताता है और जमींदार के कहने पर उसी हफ्ते का एक शुभ मुहूर्त शादी के लिए देख लेता है। पंडित शादी की बात पक्की कर लेता है और शादी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।

जब रांझू की शादी की बात का पता फुलमू को पता चलता है तो वो सहन नहीं कर पाती और जहर खाकर अपने जान दे देती है। एक तरफ रांझू की बारात की तैयारी हो रही होती है और दूसरी तरफ फुलमू की अर्थी तैयार हो रही होती है। एक तरफ रांझू की बारात बहुत ही धूमधाम से निकलती है और दूसरी तरफ फुलमू की अर्थी जा रही होती है। जब रांझू यह देखता है तो वह पालकी को रोकने को कहता है और फुलमू को अग्नि देने पहुंच जाता है। फुलमू की चिता को जैसे ही वह अग्नि देता है उसी चिता में खुद भी कूदकर अपनी जाता दे देता है और खुद के साथ-साथ फुलमू-रांझू की इस प्रेम कहानी को भी अमर कर देता है।

इस प्रेमकथा पर बहुत से लोकगीत प्रस्तुत हुए हैं। उन्ही में से एक गीत इस प्रकार है।

ग्वाड़ूएं पूछाड़ूएं तूं कजो झांकदी
झांकां कजो मारदी…
दो हत्थ बुटणे दे ला ओ फुलमू
गल्लां होई बीतियां

बुटणा जे लाण तेरियां ताईयां चाचियां
ओ रांझू सकी पाबियां…
जिनां दे मने बिच्च चा ओ रांझू
गल्लां होई बीतियां

कुनी जे परोते तेरा ब्याह पढेया
ओ रांझू ब्याह लिखेया…
कुनी ओ कित्ती कुड़माई ओ रांझू
गल्लां होई बीतियां

कुलजें परोते मेरा ब्याह पढेया
ओ मेरा ब्याह लिखेया…
बापूएं कित्ती कुड़माई फुलमू
गल्लां होई बीतियां

वारें वारें रांझूए दी जंज जाए
लोकों जानी जाए…
पारें पारें फुलमू दी लोथ लोकों
गल्लां होई बीतियां

रक्खा वो कहारों मेरिया पालकिया
मेरिया पालकिया…
फुलमू जो लकड़ी मैं पाणी लोकों
गल्लां होई बीतियां

इक्की हत्थे फुलमू जो लकड़ी पाई
लोकों लकड़ी पाई…
दूए हत्थे लांबू ते लाया लोकों
गल्लां होई बीतियां

यारी नी लाणी इना कच्चेयां कन्ने
लोकों कवारेयां कन्ने…
ब्याई करी हुंदे बेईमान लोकों
गल्लां होई बीतियां
गल्लां होई बीतियां
गल्लां होई बीतियां।

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