यह बैकुंठपुर का गौरीशंकर मंदिर है , इस मंदिर का इतिहास बहुत ही प्राचीन है ।। मान्यता है की भगवान राम ने रावण को मारने के बाद इसी मंदिर मंदिर में शिवलिंग पूजकर महादेव को प्रसन्न किया था । इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां भगवान शिव और पार्वती एक साथ एक ही शिवलिंग रूप में विराजमान हैं। छोटे शिवलिंगों को रूद्र कहा जाता है और ऐसा माना जाता है कि बैकठपुर जैसा शिवलिंग पूरी दुनिया में कहीं और नहीं है।
इस मंदिर का जिक्र महाभारत में भी आता है, जरासंध ने श्रीकृष्ण पर बार बार आक्रमण किया था, लेकिन फिर भी उसे सफलता नही मिली, तो उसने इस मन्दिर को तोड़कर यहां के शिवलिंग को नदी में बहा दिया ।। महाभारत के बाद श्रीकृष्ण ने शिवलिंग ढूंढकर इस मंदिर का दुबारा निर्माण करवाया ।
पठानो का जब बिहार पर पूर्ण रूप से कब्जा हो गया था, तो इस मंदिर को तोड़कर यहां की भूमि को समतल कर दिया, ओर यहां के शिवलिंग को नदी में बहा दिया ।।
आमेर के राजा मानसिंहजी को महादेव बार बार स्वपन में आकर गौरीशंकर मंदिर निर्माण की बात कहते ।। बिहार में जब मुसलमानो का उत्पात बढ़ गया, तो मानसिंहजी जलमार्ग से मुसलमानो का आतंक रौकने पहुंचे , लेकिन नाव रास्ते मे ही पलट गई, ओर इन्हें वहां नदी में गौरीशंकर मंदिर का शिवलिंग मिल गया ।। लेकिन काफी मश्क्कत के बाद भी सैनिक इस शिवलिंग को निकाल नही पा रहे थे ।।
मानसिंहजी जब खुद मजदूर बनकर गए, ओर अपने हाथों से शिवलिंग उठाया, तभी यह शिवलिंग उठा । बड़े आदर के साथ मानसिंहजी कच्छवाह ने इस शिवलिंग बैकुंठपुर का गौरीशंकर मंदिर बनाकर स्थापित किया ।। चित्र में जो मंदिर आप देख रहे है, यह मानसिंहजी कच्छवाह द्वारा निर्मित ही है ।। पटना के आसपास के क्षेत्र जीतकर मानसिंहजी ने वहाँ की जागीर ब्राह्मणो को सौंप दी ।।
आज भी यह मंदिर सबकी मन्नत पूरी करता है, चुनावो के समय यहां राजनेताओं की भीड़ उमड़ी रहती है, क्यो की गौरीशंकरजी के आशीर्वाद के बिना किसी की चुनाव लड़ने की हिम्मत नही होती ।
आज भी यह मंदिर महान मानसिंहजी की महानता की गाथा कहता है । इस मंदिर को बनवाने का मौका, श्रीराम , श्रीकृष्ण ओर मानसिंहजी कच्छवाह को मिला ।
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