लोबिया हरी फली, सूखे बीज, हरी खाद और चारे के लिए पूरे भारत में उगाने जाने वाली वार्षिक फसल है। यह अफ्रीकी मूल की फसल है। यह सूखे को सहने योग्य, जल्दी पैदा होने वाली फसल और नदीनों को शुरूआती समय में पैदा होने से रोकती है। यह मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद करती है। लोबिया प्रोटीन, कैल्शियम और लोहे का मुख्य स्त्रोत है। पंजाब के उपजाऊ क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है।
मिट्टी-
इसे मिट्टी की विभिन्न किस्मों में उगाया जा सकता है पर यह अच्छे जल निकास वाली बालुई मिट्टी में अच्छे परिणाम देती है।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार-
Cowpea 88: इस किस्म की पूरे राज्य में खेती करने के लिए सिफारिश की जाती है। इसे हरा चारा प्राप्त करने के साथ साथ बीज प्राप्त करने के उद्देश्य से भी उगाया जाता है। इसकी फली लंबी और बीज मोटे और चॉकलेटी भूरे रंग के होते हैं। यह पीला चितकबरा रोग और एंथ्राक्नोस रोग के प्रतिरोधी है। इसके बीज की औसतन पैदावार 4.4 क्विंटल प्रति एकड़ और हरे चारे की पैदावार 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
CL 367: इस किस्म को चारा प्राप्त करने के साथ साथ बीज प्राप्त करने के उद्देश्य से उगाया जाता है। यह किस्म ज्यादा फलियां पैदा करती है। इसके बीज छोटे और क्रीमी सफेद रंग के होते हैं। यह किस्म पीला चितकबरा रोग और एंथ्राक्नोस रोग के प्रतिरोधी है। इसके बीज की औसतन पैदावार 4.9 क्विंटल प्रति एकड़ और हरे चारे की पैदावार 108 क्विंटल होती है।
दूसरे राज्यों की किस्में-
Kashi Kanchan: यह छोटी और फैलने वाली किस्म है। इसकी खेती गर्मी के मौसम के साथ साथ बरसात के मौसम में की जा सकती है। इसकी फलियां नर्म और गहरे हरे रंग की होती हैं। इसकी फली की औसतन पैदावार 60-70 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Pusa su Komal: इसकी औसतन पैदावार 40 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Kashi Unnati : इस किस्म की फलियां नर्म और हल्के हरे रंग की होती हैं। यह बिजाई के 40-45 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 50-60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
ज़मीन की तैयारी-
अन्य दालों की फसल की तरह इस फसल के लिए सामान्य बीज बैड तैयार किए जाते हैं। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत की दो बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें।
बिजाई-
बिजाई का समय-
इस फसल की खेती के लिए मार्च- मध्य जुलाई उचित समय है।
फासला-
बिजाई के समय पंक्ति से पंक्ति का फासला 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे का फासला 15 सैं.मी. रखें।
बीज की गहराई-
बिजाई 3-4 सैं.मी गहराई में करनी चाहिए।
बिजाई का ढंग-
इसकी बिजाई पोरा ड्रिल या बिजाई वाली मशीन से की जाती है।
बीज-
बीज की मात्रा-
हरे चारे की प्राप्ती के लिए Cowpea 88 किस्म के 20-25 किलोग्राम बीजों का प्रयोग करें और सी एल 367 किस्म के 12 किलोग्राम बीजों का प्रयोग करें।
बीजों का उपचार-
बिजाई से पहले बीजों को एमीसान-6 @ 2.5 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 50 प्रतिशत डब्लयू पी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करें।
खाद-
खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA | SSP | MURIATE OF POTASH |
17 | 140 | Apply if deficiency observed |
तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
7.5 | 22 | - |
बिजाई के समय नाइट्रोजन 7.5 किलो (यूरिया 17 किलो)प्रति एकड़ के साथ फासफोरस 22 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 140 किलो) प्रति एकड़ में डालें। लोबिया की फसल फासफोरस खाद के साथ ज्यादा क्रिया करती है। यह जड़ों के साथ साथ पौधे के विकास, पौधे में पोषक तत्वों की वृद्धि और गांठे मजबूत करने में सहायक होती है।
खरपतवार नियंत्रण-
फसल को नदीनों से बचाने के लिए 24 घंटों के अंदर अंदर पैंडीमैथालीन 750 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर डालें।
सिंचाई-
फसल की अच्छी वृद्धि के लिए औसतन 4-5 सिंचाइयां आवश्यक हैं। जब फसल मई के महीने में उगाई जाये तो 15 दिनों के अंतराल पर मॉनसून आने से पहले सिंचाई करें।
पौधे की देखभाल
हानिकारक कीट और रोकथाम-
तेला और काला चेपा :
यदि तेला और काले चेपे का हमला दिखे तो मैलाथियॉन 50 ई सी 200 मि.ली. को 80-100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में डालें।
बालों वाली सुंडी :
इस कीट का ज्यादा हमला अगस्त से नवंबर के महीने में होता है। फसल को इस कीट से बचाने के लिए बिजाई के समय सेसामम बीजों की एक पंक्ति लोबिया के चारों तरफ डालें।
बीमारियां और रोकथाम-
बीज गलन और पौधों का नष्ट होना :
यह बीमारी बीज से पैदा होने वाले माइक्रोफलोरा के कारण फैलती है। प्रभावित बीज सिकुड़ जाते हैं और बेरंगे हो जाते हैं। प्रभावित बीज अंकुरन होने से पहले ही मर जाते हैं और फसल भी बहुत कमज़ोर पैदा होती है। इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले एमीसन-6@ 2.5 ग्राम या बवास्टिन 50 डब्लयु पी 2 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें।
फसल की कटाई-
बिजाई के 55 से 65 दिनों के बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
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