बाजरा को दानों और चारा के उद्देश्य से उगाया जाता है, परंतु नेपियर और हाथी घास की खेती चारा फसल के तौर पर की जाती है। नेपियर-बाजरा, बाजरा और हाथी घास के बीच संकरण है। यह हाइब्रिड पौधों की पैदावार में वृद्धि करता है| इस संकरण प्रजाति से अच्छे उत्पादन के साथ साथ अच्छी गुणवत्ता वाली खाद भी मिलती है। रोपाई के बाद, यह लगातार 2-3 वर्ष उपज देता है।
उत्तर प्रदेश में क्षेत्रफल की दृष्टि से बाजरा का स्थान गेहूं धान और मक्का के बाद आता है। कम वर्षा वाले स्थानों के लिए यह एक अच्छी फसल हैं। 40 से 50 सेमी० वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। बाजरा की खेती मुख्यतः आगरा, बरेली एवं कानपुर मण्डलों मे होती है। विगत पांच वर्षो में क्षेत्रफल, उत्पादन एवं उत्पादकता के आंकड़े परिशिष्ट-1 में दिये गये हैं।
1. प्रजातियों का चयन
अच्छी उपज प्राप्त करने हेतु उन्नतिशील प्रजातियों का शुद्ध बीज ही बोना चाहिए। बुवाई के समय एवं क्षेत्र अनुकूलता के अनुसार प्रजाति का चयन करें। विभिन्न प्रजातियों की विशेषतायें तथा उपज क्षमता निम्न तालिका में दर्शायी गयी हैं।
बाजरा के लिये उन्नतिशील प्रजातियां
प्रजाति | पकने की अवधि | ऊचाई (सेमी० ०) | दाने की उपज कु०/हे० | सूखे चारे की उपज कु०/हे० | बाली के गुण |
अं. संकुल | |||||
आई.सी.एम.बी-155 | 80-100 | 200-250 | 18-24 | 70-80 | लम्बी मोटी |
डब्लू.सी.सी.-75 | 85-90 | 185-210 | 18-20 | 85-90 | मध्यम लम्बी ठोस |
न.दे.यफ.बी.-3 (नरेन्द्र चारा बाजरा-3) | 100-110 | 220-230 | 18-22 | 100-125 | लम्बी मोटी, मध्यम |
आई.सी.टी.पी.-8203 | 70-75 | 70-95 | 16-23 | 60-65 | लम्बी ठोस |
राज-171 | 70-75 | 150-210 | 18-20 | 50-60 | पतली/लम्बी |
ब. संकर | |||||
पूसा-322 | 75-80 | 150-210 | 25-30 | 40-50 | मध्यम ठोस |
पूसा-23 | 80-85 | 180-210 | 17-23 | 40-50 | मध्यम ठोस |
आई.सी.एम.एच.-451 | 85-90 | 175-180 | 20-23 | 50-60 | मोटा ठोस |
2. भूमि का चुनाव
बाजरा के लिए हल्की या दोमट बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है। भूमि का जल निकास उत्तम होना आवश्यक हैं।
3. खेत की तैयारी
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य 2-3 जुताइयां देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करके खेत तैयार कर लेना चाहिए।
4. बुवाई का समय तथा विधि
बाजरे की बुवाई जुलाई के मध्य से अगस्त से मध्य तक सम्पन्न कर लें। बुवाई 50 सेमी० ० की दुरी पर 4 सेमी० गहरे कूंड में हल के पीछे करें।
5. बीज दर
4-5 किलोग्राम प्रति हे0
6. बीज का उपचार
यदि बीज उपचारित नहीं है तो बोने से पूर्व एक किग्रा० बीज को थीरम के 2.50 ग्राम से शोधित कर लेना चाहिए। अरगट के दोनों को 20 प्रतिशत नमक के घोल में डुबोकर निकाला जा सकता है।
7. उर्वरको का प्रयोग
मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करें। यदि परीक्षण के परिणाम उपलब्ध न हो तो संकर प्रजाति के लिए 80-100 किलोग्राम नत्रजन] 40 किलोग्राम फास्फोरस, एवं 40 किलोग्राम पोटाश तथा देशी प्रजाति के लिए 40-45 किग्रा० नत्रजन, 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हे० प्रयोग करें। फास्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई से पहली बेसल ड्रेसिंग और शेष नत्रजन की आधी मात्रा टापड्रेसिंग के रूप में जब पौधे 25-30 दिन के हो जाने पर देनी चाहिए।
8. छटनी (थिनिंग) तथा निराई-गुडाई
बाजरा की खेती में निराई-गुड़ाई का अधिक महत्व है। निराई-गुड़ाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण के साथ ही आक्सीजन का संचार होता है जिससे वह दूर तक फैल कर भोज्य पदार्थ को एकत्र कर पौधों को देती है। पहली निराई जमाव के 15 दिन बाद कर देना चाहिए और दूसरी निराई 35-40 दिन बाद करनी चाहिए।
बाजरा में खरपतवारों को नष्ट करने के लिए
- एट्राजीन 2 किग्रा०प्रति हे० अथवा 800 ग्राम प्रति एकड़ मध्यम से भारी मृदाओं में तथा 1.25 किग्रा० प्रति हे० अथवा 500 ग्राम प्रति एकड़ हल्की मृदाओं में बुवाई के तुरन्त 2 दिनों में 500 लीटर/हे० अथवा 200 लीटर / एकड़ पानी में मिलाकर स्प्रे करना चाहिए। इस शाकनाशी के प्रयोग से एकवर्षीय घासकुल एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार बहुत की प्रभावी रूप से नियमित हो जाते है। इस रसायन द्वारा विशेषरूप से पथरचटा (ट्रइरगन्थिया) भी नष्ट हो जाता है।
- जहॉ पर पथरचटा की समस्या नहीं है वहॉ पर लासो 50 ई.सी.(एलाक्लोर) 5 लीटर प्रति एकड़ बुवाई के दो दिनों के अन्दर प्रयोग करना आवश्यक है ।
- हार्डी खरपतवारों जैसे कि वन पट्टा (ब्रेचेरिया रेप्टान्स), (रसभरी कोमेलिया वैफलेन्सिस) को नियन्त्रित करने हेतु बुवाई के दो दिनों के अन्दर एट्राटाफ 600 ग्राम प्रति एकड़ अच्छी+ स्टाम्प 30 ई.सी. ट्रइफ्लूरेलिन प्रत्येक 1 लीटर प्रति एकड़ अच्छी तरह से मिलाकर 200 लीटर पानी के साथ प्रयोग करने पर आशातीत परिणाम आते है।
9. सिंचाई
खरीफ में फसल की बुवाई होने के कारण वर्षा का पानी ही उसके लिए पर्याप्त होता है। इसके अभाव में एक या दो सिंचाई फूल आने पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए।
10. फसल सुरक्षा
रोग
1. बाजरा का अरगट
पहचान
यह रोग केवल भुट्टों के कुछ दानों पर ही दिखाई देता हैं इसमें दाने के स्थान पर भूरे काले रंग के सींक के आकार की गांठे बन जाती है। जिन्हें स्केलेरेशिया कहते है। संक्रमित फूलों में फफूंद विकसित होती है जिनमें बाद में मधु रस निकलता है। प्रभावित दाने मनुष्यों एवं जानवरों के लिए हानिप्रद होते है।
उपचार
- खेत की गहरी जुताई करें।
- फसल चक्र सिद्धान्त का प्रयोग करें।
- फसल एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट करें।
- सिंचाई का समुचित प्रबन्ध करें।
- उन्नतशील/संस्तुत प्रजातियों की ही बुवाई करें।
- बीजशोधन हेतु थिरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस०2.5 ग्राम अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम अथवा मेटालैक्सिल 35 प्रतिशत डब्लू०एस० की 6.0 ग्राम प्रति किग्रा० बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
- अप्रमाणित बीजों को 20 प्रतिशत नमक के घोल से शोधित कर साफ पानी से 4-5 बार धोकर बुवाई के लिए प्रयोग करना चाहिए।
- निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।जिरम 80 प्रतिशत डब्लू०पी०2.0 किग्रा० अथवा मैकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
2. बाजरा का कण्डुआ
पहचान
कन्डुआ रोग से बीज आकार में बड़े गोल अण्डाकार हरे रंग के होते हैं] जिसमें काला चूर्ण भरा होता हैं।
उपचार
- खेत की गहरी जुताई करें।
- फसल चक्र सिद्धान्त का प्रयोग करें।
- फसल एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट करें।सिंचाई का समुचित प्रबन्ध करें।
- उन्नतशील/संस्तुत प्रजातियों की ही बुवाई करें।
- रोग ग्रसित बालियों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए।
- बीजशोधन हेतु थिरम 75 प्रतिशत डब्लू०एस० 2.5 ग्राम अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम अथवा मेटालैक्सिल 35 प्रतिशत डब्लू०एस० की 6.0 ग्राम प्रति किग्रा० बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
- निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिएजिरम 80 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2.0 ग्राम अथवा मैकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू०पी० 2.0 किग्रा०
3. बाजरे की हरित बाली रोग
पहचानः इनमें बाजरा की बालियों के स्थान पर टेढ़ी-मेढ़ी हरी-हरी पत्तियॉ सी बन जाती हैं] जिससे पूर्ण बाली झाडू के समान दिखाई देती हैं। पौधों बौने रह जाते हैं।
उपचार
- खेत की गहरी जुताई करें।
- फसल चक्र सिद्धान्त का प्रयोग करें।
- फसल एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट करें।सिंचाई का समुचित प्रबन्ध करें।उन्नतशील /संस्तुत प्रजातियों की ही बुवाई करें।
- रोग के लक्षण दिखाई देते ही कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू०पी० अथवा थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू०पी० की 2 ग्राम मात्रा प्रति ली० पानी में घोलकर 10 दिन के अन्तराल पर दो छिड़काव करना चाहिए।
- अत्यधिक प्रकोप की दशा में ग्रसित पौधों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए।
कीट
1. दीमक
खड़ी फसल में प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई०सी० 2.5 ली० प्रति हे० की दर से प्रयोग करें।
2. सूत्रकृमि
रसायनिक नियंत्रण हेतु बुवाई से एक सप्ताह पूर्व खेत में 10 किग्रा० फोरेट 10 जी फैलाकर मिला दें।
3. तना छेदक कीट
निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे० बुरका/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 किग्रा० अथवा फोरेट 10 प्रतिशत सी०जी० 20 किग्रा० अथवा डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई०सी० 1.0 ली० प्रति हे० अथवा क्युनालफास 25 प्रतिशत ई०सी 1.50 लीटर
4. प्ररोह मक्खी
निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसाययन को प्रति हे० बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 किग्रा० अथवा फोरेट 10 प्रतिशत सी०जी० 20 किग्रा० अथवा डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई०सी० 1.0 ली० प्रति हे० अथवा क्युनालफास 25 प्रतिशत ई०सी 1.50 लीटर
मुख्य बिन्दु
- क्षेत्र की अनुकूलता के अनूसार संस्तुत प्रजाति का शुद्ध बीज ही प्रयोग करें।
- उपचारित बीज बोयें।मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों को प्रयोग करें।
- फूल आने पर वर्षा के अभाव में पानी अवश्य दें।
- कीट/बीमारियों का समय से नियंत्रण अवश्य करें।
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