यह एक ईरानी या भारतीय वृक्ष है, जिसको दरेक के नाम से भी जाना जाता है| इसको संस्कृत में महानिम्बा, हिमरुद्रा, और हिंदी में बकेन भी कहा जाता है| यह दिखने में नीम के जैसा होता है| यह ईरान और पश्चिम हिमालय के कुछ क्षेत्रों में बहुत ज्यादा पाया जाता है| यह मिलिआसीआई प्रजाति के साथ संबंध रखता है| इस प्रजाति का मूल स्थान पश्चिम ऐशिया है| यह पत्ते झड़ने वाला वृक्ष है और 45 मीटर तक बढ़ता है| दरेक को आमतौर पर टिम्बर के काम के लिए प्रयोग किया जाता है (पर इसकी क्वालिटी ज्यादा बढ़िया नहीं होती)| इसके इलावा इसकी जड़ें, छाल, फल,बीज, फूल, और गोंद को दवाइयाँ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है| इसके ताज़े और सूखे पत्तों को, तेल और राख को, खांसी बैक्टीरिया और संक्रमण, मरोड़, जले हुए पर, सिर दर्द और कैंसर आदि के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है| यह छोटे समय (लगभग 20 साल तक) की फसल है और यह ज्यादा तेज़ हवा वाले क्षेत्रों के लिए उचित नहीं है|
मिट्टी
यह बहुत तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है, पर बढ़िया विकास के लिए इसको घनी, उपजाऊ रेतली दोमट मिट्टी की जरूरत होती है|
ज़मीन की तैयारी
खेत की दो बार तिरछी जोताई करें और फिर समतल करें। खेत को इस तरह तैयार करें कि उसमें पानी ना खड़ा रहे।
बिजाई
बिजाई का समय
यह तेजी से बढ़ने वाली फसल है और इसको जड़ों, बीजों, शाखाओं, और तने के द्वारा फिर से तैयार किया जा सकता है| बिजाई के लिए, संयमी जलवायु वाले क्षेत्रों में एक साल पुराने पौधे और उष्ण उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में छ: महीने पुराने पौधे लगाएं| मॉनसून के समय बीज बोयें| इसके फूल आधी बसंत तक निकलते हैं | इसके फूल जामुनी रंग के होते है|
फासला
पौधों में 9-12 मीटर का फासला रखें|
बीज की गहराई
बीज को 5-8 सैं.मी की गहराई में बोयें।
बिजाई का ढंग
इसको सीधे या पनीरी वाले ढंग के साथ लगाया जा सकता है|
बीज
बीज का उपचार
अंकुरण शक्ति बढ़ाने के लिए, बीजों को बिजाई से 24 घंटे पहले पानी में भिगो दें|
खाद
इस फसल के लिए खाद की जरूरत नहीं होती|
खरपतवार नियंत्रण
नदीनों की रोकथाम के लिए मल्चिंग करें, इस से नदीनों को रोका जा सकता है और पानी की संभाल भी की जा सकती है|
सिंचाई
गर्मियों में सिंचाई 15 दिनों के फासले पर करें और सर्दियों में अक्तूबर दिसंबर के महीने में हर रोज़ चपला सिंचाई द्वारा 25-30 लीटर प्रति वृक्ष डालें। मानसून के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। फूल निकलने के समय सिंचाई ना करें।
पौधे की देखभाल
हानिकारक कीट और रोकथाम
दरेक की फसल पर किसी भी गंभीर कीट को नहीं पाया जाता , पर सफ़ेद मक्खी और लाल मकोड़ा जूं कई बार इस पर हमला कर देती है|
बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर धब्बे :
इस बीमारी के कारण पकने से पहले ही पत्ते झड़ जाते है| अगर इसका हमला दिखाई दे तो, रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड फंगसनाशी की स्प्रे करें|
पत्तों पर सफेद धब्बे :
अगर इसका हमला दिखाई दे तो, इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील सल्फर की स्प्रे करें|
फसल की कटाई
इस वृक्ष की छाल गहरे स्लेटी रंग की होती है| इसे सजावटी वृक्ष के लिए भी उगाया जाता है| इसके फूल गर्मियो में निकलते हैं और इसके पहले सर्दियो में या ठन्डे समय में पकते हैं | इसके पत्तों, निमोलियों, बीजों और फलों के अर्क को फसल के अलग-अलग किस्म के कीटों जैसे कि दीमक, घास का टिड्डा, टिड्डियां आदि की रोकथाम के लिए प्रयोग किया जाता है|
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