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केंचुआ खाद प्रयोग विधि एवं केंचुआ खाद कैसे बनाएं

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केंचुआ खाद घर में कैसे बनाएँ हिंदी में पूरी जानकारी – केंचुआ प्राचीन काल से ही किसान का मित्र रहा है। केंचुआ खेत में उपलब्ध अध-सड़े-गले कार्बनिक पदार्थो को खाकर अच्छी गुणवत्ता की खाद तैयार करते रहते है। यह मृदा में जीवाणु कवक, प्रोटोजोआ, एक्टिनोमाइसिटीज आदि की अपेक्षित वृद्धि में भी सहायक होते हैं। आज से 25-30 वर्ष पूर्व हमारी भूमियों में केंचुआ काफी संख्या में जाये जाते थे, किन्तु आज बागों, तालाबों में ही केंचुआ रह गया है। केंचुओं की दिन प्रतिदिन घटती जा रही संख्या के कारण ही भूमि उर्वरता में कमी आती जा रही है। शायद यही करण है कि जैविक एवं टिकाऊ कृषि में पुनः केंचुआ खाद याद आ रही है।

केंचुआ खाद का उद्देश्य –

  • गोबर एवं कूड़ा-कचरा को खाद के रूप में बदलना।
  • रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग में कमी लाना।
  • भूमि की उर्वरता शक्ति बनाये रखना।
  • उत्पादन में आयी स्थिरता को समाप्त कर उत्पादन बढ़ाना।
  • उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार लाना।
  • भूमि कटाव को कम करना तथा भूमिगत जल स्तर में बढ़ोत्तरी।
  • बेरोजगारी को कम करना।
  • भूमि में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं को बढ़ाना।
  • भूमि में जल धारण क्षमता में वृद्धि करना।

वर्मी कंपोस्ट का वर्गीकरण  –

सम्पूर्ण विश्व में केंचुओं की अनुमानित 4000 प्रजातियाँ पाई जाती है, जिसमें लगभग 3800 प्रजातियाँ जल में रहने वाली एवं 200 प्रजातियाँ भूमि में रहने वाली हैं। भारतवर्ष में लगभग 500 प्रजातियाँ पाई जाती है। उद्भव एवं विकास के आधार पर केंचुओं को उच्च अकशेरूकी समूह में रखा गया है, जिसका फाइलम, एनिलिडा क्लास-ओलिगो कीटा तथा आर्डर-लिनिकोली है। मुख्यतः कंचुएं तीन प्रकार के होते है:

मुख्यताः केचुएं तीन प्रकार के होते हैं –

  • एपीजीइक – यह भूमि की ऊपरी सतह पर रहते है।
  • एनीसिक – भूमि की मध्य सतह पर पाये जाते है अथवा रहते है।
  • एण्डोजीइक – यह जमीन की गहरी सतह पर रहते है।

विश्व में पाई जाने वाली केंचुओं की समस्त प्रजातियाँ पर्यावरण के अनुसार उपयोगी हैं। भूमि में पाई जाने वाली समस्त 200 जातियॉ भूमि को जीवन्त बनाये रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, किन्तु भूमि में केंचुओं की कमी हो गयी है अथवा भूमि में कंचुए समाप्त हो गये हैं। केंचुओं की उन प्रजातियों का चयन वर्मी कम्पोस्ट निर्माण हेतु किया जाये जो गोबर एवं घास-पूस, पेड़-पौधों की पत्तियों को आसानी से खाकर खाद बना सकें। अतः वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद) बनाने के लिए उपयोग में आने वाले वर्म निम्नवत है –

जैविक कृषि में केंचुआ खाद-वर्मी कम्पोस्ट
क्रमांक
कुल
जाति
प्रजाति
1
यूटलिडी
लुम्‍बियस
रूबेलस
यून्डिलस
यूजिनी
2
लुब्रिसीडी
आइसीनिया
फोटिडा
आइसीनिया
एन्डेरी
3
मेगास्कोल्‍सिडी
पेरिओनिक्स
एक्सकेक्टिस
लैम्‍पिटो
मोरिटि
4
मोलिलोगैस्ट्डी
द्रविड़ा
विल्लसि
उपरोक्त 7 प्रकार के केंचुओं को खाद बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता हैं किन्तु खाद बनाने की क्षमता एवं वृद्धि तथा मौसम की प्रतिकूलता सर्वाधिक सहन कर सकने के कारण इस कार्य में मुख्यतः आइसीनिया फोटिडा एवं यूडिलस यूजिनी दो प्रजातियाँ सर्वाधिक उपयुक्त पायी जाती है।

यूडिलस यूजिनी –
इसका प्रयोग दाक्षिण भारत के इलाके में सर्वाधिक होता है। इसकी विशेषता यह है कि निम्न तापमान सहन करने के साथ-साथ छायादार स्थिति में उच्च तापक्रम को भी सहन करने की क्षमता रखता है। यह केंचुआ रात्रि में अधिक सक्रिय रहता है। इनका रंग लालिमायुक्त, बैंगनी, पशु के मांस की तरह होता है। लम्बाई 4 से 14 सेमी० तथा व्यास 5 से 8 मिमी. तक होता है। यह 40 दिन में वयस्क हो जाते हैं तथा इनकी अधिकतम उम्र तीन वर्ष तक होती है। यह अनुकूल परिस्थितियों में 46 दिन तक तीन दिन के अन्तराल पर 1-4 कोकून बनाता है। इसके एक कोकून से 1 से 5 केंचुए निकलते हैं।

आइसीनिया फोटिडा  –
इसका प्रयोग खाद बनाने में सबसे अधिक किया जा रहा है। इसे रेड वर्म के नाम से जाना जाता है। यह लाल भूरे बैंगनी रंग के होते है इनके पृष्ठ भार पर रंगीन धारियां दिखाई देती हैं। इनकी लम्बाई 4 से 13 सेमी० तथा व्यास 5 से 8 मिमी. होता है। यह काफी जुझारू प्रवृत्ति के होते हैं। इसी कारण इनकी उत्पादन क्षमता अधिक होती है तथा रखरखाव आसान होता है। परिपक्व केंचुआ का वजन 1.5 से 2 ग्राम तक होता है। यह कोकून से निकलने के 55 दिन बाद वयस्क होकर कोकून बनाना आरम्भ कर देते हैं। तीन दिन के अंतराल पर एक कोकून बनाता है जो 23-24 दिन में हैचिंग के उपरान्त केंचुआ बनाता है।

वर्मी खाद उत्पादन तकनीकी –
बनाने की प्रक्रिया में निम्नॉकित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है
स्थान का चुनाव – जिन स्थानों पर वर्षा का पानी एकत्र न होता हो, उन स्थानों का चुनाव करना चाहिये। आस-पास स्वच्छ पानी होना चाहिए ताकि कार्बनिक पदार्थों को हमेशा नम रखा जा सके। चूँकि सदैव निगरानी की आवश्यकता पड़ती है। अतः घर के आसपास ही यह कार्य करना उचित होता है।
केंचुए की प्रजाति का चुनाव – खाद बनाने के लिए केंचुए की उन प्रजातियों का चुनाव करना चहिए जो कार्बनिक पदार्थों को अधिक मात्रा में खाने की क्षमता रखते हो तथा जो मौसम के उतार चढ़ाव को सहन कर सके तथा प्रजनन क्षमता भी अच्छी हो।
कार्बनिक अपशिष्टों का चयन – जिस जगह यह कार्य प्रारम्भ किया जा रहा हो उस स्थान पर कार्बनिक अपशिष्टों की उपलब्धता, जैसे गोबर, हरा पदार्थ, पेड़ पौधों की पत्तियाँ उचित मात्रा में एवं सस्ती कीमत पर उपलब्ध हों।
भण्डारण की व्यवस्था – व्यवसायिक स्तर पर भण्डारण के लिए छायादार शेड उपलब्ध होना आवश्यक है, ताकि तैयार खाद को एकत्र कर उचित नमी बनाये रखते हुए भण्डारित किया जा सकें, क्योंकि वर्मीकम्पोस्ट में नमी कम होने अथवा कम्पोस्ट सूख जाने पर इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है।
शत्रुओं से बचाव  – प्रकृति में केचुए के काफी शत्रु है जैसे मनुष्य (मछली पकड़ने में), सर्प, मेंढक, छिपकली, चिड़िया यह सभी केंचुओं को अधिक खाते हैं। दीमक, लाल चीटीं यह केंचुए को क्षति पहुँचाते हैं। अतः इनके द्वारा क्षति को रोकने के सम्पूर्ण प्रयास की आवश्यकता होती है।
उत्पादन के उपयोग की व्यवस्था – तैयार खाद को कहाँ उपयोग किया जाना है, इसकी योजना पहले से बनाना आवश्यक है। यदि स्वयं खेती में प्रयोग करना हो तो आवश्यकता के अनुसार ही योजना बनानी चाहिए। यदि बाजार में बेचना हो तो मार्केटिंग की व्यवस्था की रणनीति तैयार करना तथा रेडवर्म को बेचने की व्यवस्था करना आवश्यक है।

उत्पादन इकाई संरचना निर्माण-
50 से 75 टन प्रतिवर्ष वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन हेतु 12 गुणा 20 फीट आकार का पक्का प्लेटफार्म बनाया जाता है जिसके ऊपर 15 गुणा 25 फीट आकार को शेड लगाया जाता है ताकि छाया बनी रहे और वर्षा का पानी अन्दर न आये। सम्पूर्ण प्लेटफार्म के चारो ओर 2 फीट ऊँची दीवार बनाकर दीवार के ऊपर से शेड की ऊँचाई तक मुर्गा जाली लगानी आवश्यक है। ताकि केंचुए के दुश्मनों से केंचुओं को बचाया जा सके। अन्दर जाने के लिए एक दरवाजा भी आवश्यक है, जिसे आवश्यकतानुसार ही खोला जाय।

बेड निर्माण – बनाये गये प्लेटफार्म में 3 गुणा 18 फीट की तीन बेड 4 इंच मोटी बालू अथवा बजरी अथवा बालू के ऊपर 1 से 2 इंच मोटी परत घास-फूस की लगा देनी चाहिए, इसके उपरान्त 2 फीट चैड़ी 1.5 फिट ऊंची बेड गोबर एवं अन्य कार्बनिक अपशिष्टों की लगानी चाहिए।

रेड वर्म का प्रयोग – तैयार तीन बेडों में अनुमानित 18-20 कुन्तल कार्बनिक अपशिष्ट प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार क्यारी जो 2 गुणा 15 गुणा 18 फीट की है, में अनुमानित 6-7 कुन्तल गोबर एवं अन्य पदार्थ प्रयुक्त किये जाते हैं, में 25-30 किग्रा० रेडवर्म डाला जाता है, जो इस क्यारी के पदार्थ के अधिकतम एक माह में खा लेते हैं। इस प्रकार तीन बेडों में प्रयुक्त 20 कुन्तल गोबर एवं अन्य पदार्थों को 75 किग्रा० रेड वर्म एक माह में खाद बनाने में समर्थ होते है। रेडवर्म अपने वजन के बराबर प्रतिदिन भोजन ग्रहण करते है। अतः रेड वर्म की मात्रा के आधार पर ही खाद की मात्रा का आँकलन किया जा सकता है। प्लेटफार्म का आकार पर खाद उत्पादन की मात्रा का कोई आंकलन नहीं किया जा सकता। खाद उत्पादन की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि केंचुओं की कितनी मात्रा का कैसे प्रबन्धन किया गया है।

कच्चे माल में क्या प्रयोग करें ?
  • विभिन्न जानवरों का गोबर, भेड़, बकरियों की मेंगनी, घोड़े की लीद, मुर्गी फार्म का कचरा।
  • फसलों के तने, पत्तियों, खरपतवारों के अवशेष, सड़ी-गली बगीचे की पत्तियॉ, गन्ने की खोई आदि।
  • लकड़ी का बुरादा, छाल, गूदा, सूती फटे पुराने कपड़े, कागज, केले की पत्तियॉ, रसोई घर का कूड़ा।
  • बायोगैंस संयत्र से निकलने वाली सेलरी, खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की अपशिष्ट आदि।

सावधानियॉ – 
  • प्रति सप्ताह बेड को एक बार हाथ अथवा पन्जे से पलट देना चाहिए ताकि गोबर पलट जाये और वायु संचार हो जाये ताकि बेड में गर्मी न बढ़ने पाये।
  • किसी भी प्रकार ताजा गोबर न प्रयोग किया जाये क्योंकि ताजा गोबर गर्म होता है, इससे केंचुए मर सकते हैं।
  • बेड में सदैव 35-40 प्रतिशत नमी बनायी रखी जाये इसके लिए मौसम के अनुसार समय-समय पर पानी का छिड़काव करते रहना चाहिये। वर्षा ऋतु में पानी छिड़कने की आवश्यकता बहुत कम पड़ती है। शरद ऋतु में दूसरे-तीसरे दिन पानी का छिड़काव एवं ग्रीष्म ऋतु में रोजाना पानी छिड़काना चाहिए।
  • सांप, मेंढक, छिपकली से बचाव हेतु मुर्गा जाली प्लेटफार्म के चारो और लगानी चाहिए ताकि दीमक, चींटी से बचाव हेतु प्लेटफार्म के चारों तरफ नीम का काढ़ा प्रयोग करते रहना चाहिए।
  • बेड का तापमान 8 से 30 डिग्री सेंग्रे. से कम-ज्यादा न होने दिया जाये, 15 से 25 डिग्री. सेग्रे. तापमान पर यह सर्वाधिक क्रियाशील रहते है तथा खाद शीघ्र बनती है।

हवा का संचार पर्याप्त बना रहे किन्तु रोशनी कम से कम रहे इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
वर्मी कम्पोस्ट प्रयोग की मात्रा
क्रमांक
फसल का नाम
वर्मी कम्पोस्ट टन में प्रति एकड़
1
दलहनी एवं खाद्यान फसल
टन बुवाई से पूर्व
2
तिलहनी फसल
टन बुवाई से पूर्व
3
मसाला एवं सब्जी फसल
टन बुवाई से पूर्व
4
फूल वाली फसल
टन बुवाई से पूर्व
5
फलदार पौधों में रोपण के समय
किग्रा०/वृक्ष
6
गमलों में
मिट्टी के भार का 10 प्रतिशत
7
लान में
किग्रा० प्रति वर्गमीटर

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