गोण्डा लाइव न्यूज एक प्रोफेशनल वेब मीडिया है। जो समाज में घटित किसी भी घटना-दुघर्टना "✿" समसामायिक घटना"✿" राजनैतिक घटनाक्रम "✿" भ्रष्ट्राचार "✿" सामाजिक समस्या "✿" खोजी खबरे "✿" संपादकीय "✿" ब्लाग "✿" सामाजिक "✿" हास्य "✿" व्यंग "✿" लेख "✿" खेल "✿" मनोरंजन "✿" स्वास्थ्य "✿" शिक्षा एंव किसान जागरूकता सम्बन्धित लेख आदि से सम्बन्धित खबरे ही निःशुल्क प्रकाशित करती है। एवं राजनैतिक , समाजसेवी , निजी खबरे आदि जैसी खबरो का एक निश्चित शुल्क भुगतान के उपरान्त ही खबरो का प्रकाशन किया जाता है। पोर्टल हिंदी क्षेत्र के साथ-साथ विदेशों में हिंदी भाषी क्षेत्रों के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है और भारत में उत्तर प्रदेश गोण्डा जनपद में स्थित है। पोर्टल का फोकस राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को उठाना है और आम लोगों की आवाज बनना है जो अपने अधिकारों से वंचित हैं। यदि आप अपना नाम पत्रकारिता के क्षेत्र में देश-दुनिया में विश्व स्तर पर ख्याति स्थापित करना चाहते है। अपने अन्दर की छुपी हुई प्रतिभा को उजागर कर एक नई पहचान देना चाहते है। तो ऐसे में आप आज से ही नही बल्कि अभी से ही बनिये गोण्डा लाइव न्यूज के एक सशक्त सहयोगी। अपने आस-पास घटित होने वाले किसी भी प्रकार की घटनाक्रम पर रखे पैनी नजर। और उसे झट लिख भेजिए गोण्डा लाइव न्यूज के Email-gondalivenews@gmail.com पर या दूरभाष-8303799009 -पर सम्पर्क करें।

ज्वार की खेती कैसे करें ?

Image SEO Friendly

ज्वार भारत की मुख्य तीसरी अनाज की फसल है।  यह फसल चारे के लिए और कईं फैक्टरियों में कच्चे माल में प्रयोग की जाती है। ज्वार में कैल्शियम, पोटाशियम, आयरन, प्रोटीन और फाइबर उच्च मात्रा में होता है।यू एस ए ज्वार का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में महाराष्ट्र, आंध्रा प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गुजरात, तामिलनाडू, राजस्थान और उत्तर प्रदेश ज्वार उगाने वाले मुख्य राज्य हैं। उत्तर प्रदेश में झांसी, हमीरपुर, बांदा, फतेहपुर, अलाहबाद, फारूखाबाद, मथुरा और हरदोई ज्वार उगाने वाले मुख्य जिले हैं।

ज्वार की खेती मोटे दाने वाली अनाज फसल और हरे चारे के रूप में की जाती है. पशुओं के चारे के रूप में ज्वार के सभी भागों का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा कुछ जगहों पर इसके दानो का इस्तेमाल लोग खाने में भी करते हैं. इसके दानो से खिचड़ी और चपाती बनाई जाती है.

ज्वार की खेती सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर की जा सकती है. भारत में ज्वार की खेती खरीफ की फसलों के साथ में की जाती है. इसके पौधे 10 से 12 फिट की लम्बाई के हो सकते हैं. जिनको हरे रूप में कई बार काटा जा सकता है. इसके पौधे को किसी विशेष तापमान की जरूरत नही होती. ज्यादातर किसान भाई इसकी खेती हरे चारे के रूप में ही करते हैं. लेकिन कुछ किसान इसे व्यापारिक तौर से उगाते हैं.

अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी
ज्वार की खेती वैसे तो किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है. लेकिन अधिक पैदावार लेने के लिए इसे उचित जल निकासी वाली चिकनी मिट्टी में उगाना चाहिए. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

ज्वार की खेती खरीफ की फसलों के साथ में की जाती है. इस दौरान गर्मी के मौसम में इसके पौधों की उचित सिंचाई करते रहने पर ये अच्छे से विकास करते हैं. इसके पौधों को बारिश की अधिक सामान्य जरूरत होती है. अधिक तेज़ गर्मी के मौसम में इसके पौधों की सिंचाई ज्यादा करने पर तेज़ गर्मी का असर इसके पौधों पर देखने को नही मिलता. और पौधे विकास ही अच्छे से करते हैं.

ज्वार के बीजों को अंकुरण के वक्त सामान्य तापमान की जरूरत होती हैं. उसके बाद पौधों को विकास करने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है. लेकिन इसके पूर्ण विकसित पौधे 45 डिग्री तापमान पर भी आसानी से विकास कर लेते हैं.

उन्नत किस्में

ज्वार की कई उन्नत किस्में हैं जिन्हें उनके अधिक उत्पादन और बार बार कटाई के लिए तैयार किया गया हैं.

पूसा चरी 23
इस किस्म के पौधे पतले, लम्बे और कम रसदार होते हैं. जिनका स्वाद कम मीठा होता है. इस किस्म के इसके पौधे कम समय में अधिक कटाई के लिए जाने जाते हैं. इसके पौधों से प्रति हेक्टेयर 600 किवंटल के आसपास हरा चारा और 160 से 180 किवंटल सुखा चारा प्राप्त हो जाता है. इसकी खेती मुख्य रूप से हरे चारे के लिए ही की जाती है.

सी.एस.बी. 13
ज्वार की इस किस्म के पौधे 110 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. इसके पौधों की ऊंचाई 10 से 15 फिट के बीच पाई जाती है. ज्वार की इस किस्म को हरे चारे और दानो दोनों के लिए उगाया जा सकता है. इसके बीजों की जल्दी रोपाई के दो कटाई करने के बाद इससे दाने प्राप्त किया जा सकते हैं. इस किस्म के पौधों की दाने के रूप में प्रति हेक्टेयर पैदावार 15 से 20 किवंटल तक पाई जाती है. जबकि सूखे चारे के रूप में इसकी पैदावार 100 किवंटल के आसपास पाई जाती है.

एस.एस.जी. 59-3
ज्वार की इस किस्म को हरे चारे के लिए उगाया जाता है. हरे चारे के रूप में इसके पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 600 से 700 किवंटल के आसपास पाया जाता है. इसके पौधों को अधिक समय तक बार बार कटाई के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे पतले, लम्बे और कम रस वाले होते हैं. इस किस्म के पौधों से सूखे चारे के रूप में 150 किवंटल से भी ज्यादा भूषा प्राप्त होता है. इस किस्म के पौधों पर कई तरह के किट जनित रोग देखने को भी नही मिलते.

सी.एस.एच 16
ज्वार की ये एक संकर किस्म है. जिसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 110 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 30 से 40 किवंटल तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधों से सूखे चारे के रूप में 90 किवंटल के आसपास भूषा प्राप्त होता है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं.

एम.पी. चरी
ज्वार की इस किस्म को भी मुख्य रूप से हरे चारे के लिए उगाया जाता है. लेकिन इसकी जल्दी रोपाई कर इसकी खेती हरे चारे और दाने दोनों के लिए की जा सकती है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के बाद 120 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. इसके पौधे पर फूल बीज रोपाई के लगभग 70 दिन बाद बनने शुरू हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों से प्रति हेक्टेयर 500 किवंटल के आसपास हरा चारा और 18 किवंटल के आसपास दाने प्राप्त किये जा सकते हैं.

पी.सी.एच. 106
ज्वार की इस किस्म को हरे चारे के लिए उगाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर फूल बीज रोपाई के 50 से 60 दिन बाद बनने शुरू हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे मध्यम मोटाई लिए हुए लम्बे दिखाई देते हैं. जिनमे रस की मात्रा सामान्य रूप से कम पाई जाती है. इस किस्म के पौधों से 800 किवंटल तक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है. इसके पौधों की कई बार कटाई की जा सकती है.

हरा सोना
ज्वार की इस किस्म को सबसे ज्यादा पंजाब के आसपास वाले राज्यों में उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर हरे चारे के रूप में उत्पादन 650 किवंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे तीन से चार कटाई दे सकते हैं. इसके एक पौधे से 6 से 8 कल्ले निकलते हैं. इस किस्म के पौधे पतले, लम्बे और कम रसदार होते हैं.

खेत की तैयारी
ज्वार की खेती के लिए शुरुआत में खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर उसमें उचित मात्रा में गोबर की खाद डाल दें. उसके बाद फिर से खेत की जुताई कर खाद को मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी छोड़कर उसका पलेव कर दे. पलेव करने के तीन से चार दिन बाद जब खेत सूखने लगे तब रोटावेटर चलाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लें. उसके बाद खेत में पाटा चलाकर उसे समतल बना लें. ज्वार की रोपाई समतल खेत में की जाती है.

बीज रोपाई का तरीका और टाइम

ज्वार के बीजों की रोपाई ड्रिल और छिडकाव दोनों विधियों से की जाती है. इसके बीजों की रोपाई से पहले उन्हें कार्बेंडाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए या फिर सरकार द्वारा प्रमाणित बीजों को उगाना चाहिए. जवार के दानो के उत्पादन के रूप में इसकी रोपाई के वक्त प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलो बीज काफी होता है. लेकिन हरे चारे के रूप में रोपाई के लिए लगभग 30 किलो के आसपास बीज की जरूरत होती है.

छिडकाव विधि से रोपाई के दौरान किसान भाई समतल खेत में इसके बीजों को छिड़ककर कल्टीवेटर के माध्यम से खेत की दो हल्की जुताई कर देते हैं. छिडकाव विधि से बीजों की रोपाई के दौरान खेत की जुताई हलों के पीछे हल्का पाटा बांधकर करते हैं. जिससे बीज मिट्टी में अच्छे से मिल जाता है. जबकि ड्रिल के माध्यम से इसके बीजों की रोपाई पंक्तियों में की जाती है. पंक्तियों में रोपाई के दौरान प्रत्येक पंक्तियों के बीच एक फिट की दूरी रखी जाती है. जबकि पंक्ति में बीजों के बीच 5 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए. इन दोनों विधियों से रोपाई के दौरान इसके बीजों को जमीन में तीन से चार सेंटीमीटर नीचे उगाया जाना चाहिए. इससे बीज का अंकुरण अच्छे से होता है.

ज्वार के बीजों की रोपाई खरीफ की फसलों के साथ की जाती है. लेकिन हरे चारे के रूप में इसकी खेती करते वक्त इसे बारिश के मौसम से पहले अप्रैल माह के लास्ट या मई के शुरुआत में उगाना अच्छा होता है. इस दौरान ज्वार की रोपाई करने से इसकी कई बार कटाई की जा सकती हैं. जबकि दानो के रूप में खेती करने के लिए इसे बाजरे के साथ पहली बारिश होने पर उगाना चाहिए.

पौधों की सिंचाई
ज्वार की खेती इसकी पैदावार के रूप में करने पर सिंचाई की सामान्य जरूरत होती है. इस दौरान इसके पौधों को तीन से चार सिंचाई की जरूरत होती है. जबकि हरे चारे के रूप में इसकी खेती करने पर इसके पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत होती है. हरे चारे के रूप में खेती करने पर इसके पौधों की तीन से चार दिन के अंतराल में सिंचाई करते रहना चाहिए. इससे पौधों का विकास अच्छे से होता है. और पौधा जल्द कटाई के लिए तैयार हो जाता है.

उर्वरक की मात्रा
ज्वार की खेती में उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है. लेकिन हरे चारे के रूप में खेती करने के लिए उर्वरक की जरूरत ज्यादा होती है. ज्वार की खेती के लिए शुरुआत में खेत की जुताई के वक्त लगभग 10 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. जैविक खाद के अलावा रासायनिक खाद के रूप में एक बोरा डी.ए.पी. की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में छिड़क दें. इसके अलावा हरे चारे के रूप में खेती करने पर इसके पौधों की हर कटाई के बाद 20 से 25 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में छिडक देना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण
हरे चारे के रूप में ज्वार की खेती करने पर इसके पौधों को खरपतवार नियंत्रण की जरूरत नही पड़ती. लेकिन इसकी पैदावार के रूप में खेती करने पर इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए. ज्वार की खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक और रासायनिक दोनों तरीके से किया जाता है. रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के तुरंत बाद एट्राजिन की उचित मात्रा का छिडकाव कर देना चाहिए. जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद एक बार पौधों की गुड़ाई कर देनी चाहिए. इसके पौधों की एक गुड़ाई काफी होती है.

पौधे की देखभाल
हानिकारक कीट और रोकथाम
ज्वार की मक्खी : 
Image SEO Friendly
यह नए पत्तों के ऊपर अंडे देती है। अंडे सफेद रंग के और बेलनाकार के होते हैं जबकि प्रौढ़ कीट सलेटी रंग के हो जाते हैं। छोटे कीट पीले रंग के होते हैं और तने के अंदर वृद्धि करके तने को काट देते हैं और डेड हार्ट का उत्पादन करते हैं। प्रभावित पौधे में आस पास पत्तों का उत्पादन होता है। पौधे को खींचने पर पौधा आसानी से बाहर निकल आता है और गंदी दुर्गंध देता है। 1 से 6 सप्ताह के पौधे इस कीट के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं।

बिजाई में देरी ना करें। पिछली फसल की कटाई के बाद, खेत साफ करें और बचे पौधे बाहर निकाल  दें। बिजाई से पहले बीज को इमीडाकलोप्रिड 70 डब्लयु एस 4 मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें। प्रभावित पौधे को निकालें और खेत में से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। हमले की हालत में मिथाइल डेमेटान 25 ई सी 200 मि.ली. और डाइमैथोएट 30 ई सी 200 मि.ली. को प्रति एकड़ में डालें। 

तना छेदक :
Image SEO Friendly
इसके अंडे लंबे पत्ते के नीचे की ओर गुच्छे में होते हैं। यह सुंडी पीले भूरे रंग की होती है। जिसका सिर भूरा होता है। पतंगे तूड़ी रंग के होते हैं। हमले के दौरान पत्तों का सूखना और उनका झड़ना देखा जा सकता है। पत्तों के ऊपर छोटे छोटे सुराख नज़र आते हैं।

इस कीट की जांच के लिए मध्य रात्रि तक रोशनी कार्ड लगा दें। इसे तने छेदक के प्रौढ़ कीट आकर्षित होते हैं और मर जाते हैं। फोरेट 10 जी 5 किलो या कार्बोफियूरॉन 3 जी 10 किलो को रेत में मिलाकर 20 किलो मात्रा बना लें और पत्ते के छेदों में डालें। इससे बचाव के लिए कार्बरील 800 ग्राम प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

गोभ की सुंडी : 
Image SEO Friendly
इसके अंडे सफेद और गोल आकार के होते हैं। इसके अंडे क्रीमी सफेद और गोलाकार आकार के होते हैं। कीटों का रंग हरे से भूरे रंग के साथ शरीर पर भूरी सलेटी रंग की धारियां होती हैं। प्रौढ़ कीट हल्के भूरे पीले रंग के होते हैं। इन कीटों का हमला होने पर बालियां आधी खायी हुइ लगती हैं और चूने जैसी दिखाई देती हैं। बालियों में इनका मल देखा जा सकता है।

हमले की जांच के लिए रोशनी वाले कार्ड लगाएं। फूल निकलने से दानों के पकने तक 5 सैक्स फेरोमोन कार्ड  प्रति एकड़ में प्रयोग करें। कार्बरील 10 डी 1 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 

बालियों की सुंडी : 
Image SEO Friendly
जब दाने दूधिया अवस्था में होते हैं तो छोटे और प्रौढ़ कीट दानों में से रस चूसते हैं। जिसके कारण दाने सिकुड़ जाते हैं और काले रंग के हो जाते हैं। बालियों पर बड़ी संख्या में छोटे कीटों को देखा जा सकता है। ये कीट पतले और हरे रंग के होते हैं। बालियों के नर प्रौढ़ कीट हरे रंग के होते हैं। और मादा भी हरे रंग के और किनारों पर से भूरे रंग के होते हैं।

बालियों के निकलने के बाद तीसरे और 18वें दिन कार्बरील 10 डी 10 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो प्रति एकड़ में छिड़कें। मैलाथियोन 50 ईसी 400 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर 10 प्रतिशत बालियों के निकलने पर स्प्रे करें।  

ज्वार का मच्छर : 
Image SEO Friendly
यह कीट छोटे मच्छर के आकार का होता है। जिसका पेट गहरा संतरी रंग का और पारदर्शी पंख होते हैं। छोटे कीट विकसित दानों को अपना भोजन बनाते हैं। लार्वा अंडकोश से अपना भोजन लेता है और विकसित दानों को नष्ट कर देता है जिससे दाने आधे हो जाते हैं। दानों पर लाल रंग के चिपचिपे पदार्थ का निकलना छोटे कीटों की मौजूदगी को दर्शाता है।

इन कीटों को आकर्षित करने के लिए रोशनी वाले कार्ड लगाएं। कार्बरील 10 डी 10 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो बालियां निकलने के बाद तीसरे और 18वें दिन प्रति एकड़ में डालें। 

बीमारियां और रोकथाम
एंथ्राक्नोस : 
Image SEO Friendly

पत्तों की दोनों तरफ छोटे लाल रंग के धब्बे जो बीच में से सफेद रंग के होते हैं, पड़ जाते हैं। प्रभावित भाग के सफेद सतह के ऊपर कई छोटे छोटे काले धब्बे दिखाई देते हैं जो फंगस के जीवाणु होते हैं। तने के ऊपर गोलाकार कोढ़ विकसित हो जाता है। जब हम प्रभावित तने को काटते हैं तो यह बेरंगा दिखाई देता है। यह बीमारी बारिश, उच्च नमी और 28-30 डिगरी सैल्सियस तापमान पर ज्यादा फैलती है। 

फसल को लगातार ना उगाएं। अंतरफसली अपनायें। प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले कप्तान या थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 300 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

कुंगी : 
Image SEO Friendly

यह बीमारी फसल की वृद्धि वाली अवस्था में हमला करती है। पत्तों के निचली तरफ लाल रंग के छोटे धब्बे देखे जा सकते हैं। पत्तों की दोनों सतहों पर दाने बन जाते हैं और पत्तों के फटने पर लाल रंग का पाउडर निकलता है। तने के नज़दीक और तने पर भी दाने पड़ जाते हैं। यह बीमारी कम तापमान 10-12 डिगरी सैल्सियस के साथ बारिश वाले मौसम में भी हमला करती है।  

कुंगी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 250 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। या सल्फर 10 किलो को प्रति एकड़ में छिड़कें।

गुंदिया रोग : 
Image SEO Friendly

इस बीमारी के कारण प्रभावित फूल में से शहद जैसा पदार्थ निकलता है।  यह पदार्थ कई कीटों और कीड़ियों को आकर्षित करता है और बालियां काले रंग की दिखाई देती हैं। मिट्टी के ऊपर प्रभावित पौधे के आधार पर सफेद रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। फूल निकलने के समय अधिक बारिश, उच्च नमी और बादलवाई में यह बीमारी अधिक फैलती है।

गुंदिया रोग की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले 2 प्रतिशत नमक के घोल में बीजों को भिगोयें, इस रोग से प्रभावित बीजों को निकाल दें। कप्तान या थीरम 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। ज़ीरम, ज़िनेब, कप्तान या मैनकोजब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर बालियां निकलने के समय स्प्रे करें। दूसरी स्प्रे 50 प्रतिशत फूल निकलने के समय करें। यदि जरूरत पड़े तो सप्ताह में एक सप्ताह में दोबारा स्प्रे करें।

दानों पर फंगस
Image SEO Friendly
फूल निकलने या दानें भरने के समय नमी वाले मौसम के कारण बालियों पर फंगस पड़ जाती है। घनी बालियां इस बीमारी के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं।

पिछेती बिजाई ना करें। प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि बालियां निकलने के दौरान बारिश हो जाये तो मैनकोजेब 2.5 ग्राम या कप्तान 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

पत्तों के निचले धब्बे : 
Image SEO Friendly
पत्तों की निचली सतह पर सफेद रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं। पत्ते हरे या पीले रंग के दिखाई देते हैं।

एक ही खेत में लगातार फसल ना उगायें। दालों और तेल वाली फसलों के साथ फसली चक्र अपनायें। इस बीमारी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले मैटालैक्सिल 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैटालैक्सिल 2 ग्राम या मैनकोजेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

पत्ता झुलस रोग : 
Image SEO Friendly
शुरूआती अवस्था में छोटे संकुचित लंबी धुरी के आकार के धब्बे पड़ जाते हैं। पुराने पौधों पर लंबे समय तक तूड़ी के आकार के धब्बे मध्य और किनारों पर देखे जा सकते हैं। यह पत्ते के बड़े भाग को नष्ट कर देता है और फल जली हुई दिखाई देती है। यह बीमारी उच्च नमी, अधिक बारिश के साथ ठंडे नमी वाले मौसम में ज्यादा फैलती है।

बीमारी रहित बीजों का प्रयोग करें और प्रतिरोधक किस्में उगायें। अंतरफसली अपनायें। बिजाई से पहले थीरम या कप्तान 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। जरूरत पड़े तो 15 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।

दानों की कांगियारी : 
Image SEO Friendly

बालियों में दाने बनने के समय यह बीमारी हमला करती है। दाने गंदे सफेद या सलेटी रंग के दिखाई देते हैं और सफेद क्रीम से ढक जाते हैं। बालियों के निकलने से पूर्व भी पौधा इस बीमारी से प्रभावित हो सकता है। इससे पौधा, सेहतमंद पौधे से छोटा, पतला तना होता है। बालियां सेहतमंद पौधे से जल्दी निकल आती हैं। 

बीमारी रहित बीजों का प्रयोग करें और प्रतिरोधक किस्में उगायें। अंतरफसली अपनायें। बिजाई से पहले थीरम या कप्तान 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।

फसल की कटाई
बिजाई के 65-85 दिन बाद जब फसल चारे का रूप ले लेती है तब इसकी कटाई करनी चाहिए। इसकी कटाई का सही समय तब होता है जब दाने सख्त और नमी 25 प्रतिशत से कम हो। जब फसल पक जाये तो तुरंत कटाई कर लें। कटाई के लिए दरांती का प्रयोग करें। पौधे धरती के नज़दीक से काटें। कटाई के बाद काटी फसल को एक जगह पर इक्ट्ठी करें और अलग अलग आकार की भरियां बना लें। कटाई के 2-3 दिन बाद बलियों में से दाने निकालें। कई बार खड़ी फसल में से बलियां काटकर अलग अलग कर ली जाती हैं और फिर बलियों की छंटाई कर ली जाती है। इसके बाद इन्हें धूप में सुखाया जाता है।

पैदावार और लाभ
ज्वार की विभिन्न किस्मों के पौधों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 25 किवंटल तक पाई जाती है. जबकि इसके पौधों से सूखा चारा 100 से 150 किवंटल तक प्राप्त होता है. इसके दानो का बाज़ार भाव ढाई हज़ार रूपये प्रति किवंटल के आसपास पाया जाता है. जिस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से 60 हज़ार के आसपास कमाई कर लेता है.

No comments:

Post a Comment

कमेन्ट पालिसी
नोट-अपने वास्तविक नाम व सम्बन्धित आर्टिकल से रिलेटेड कमेन्ट ही करे। नाइस,थैक्स,अवेसम जैसे शार्ट कमेन्ट का प्रयोग न करे। कमेन्ट सेक्शन में किसी भी प्रकार का लिंक डालने की कोशिश ना करे। कमेन्ट बॉक्स में किसी भी प्रकार के अभद्र भाषा का प्रयोग न करे । यदि आप कमेन्ट पालिसी के नियमो का प्रयोग नही करेगें तो ऐसे में आपका कमेन्ट स्पैम समझ कर डिलेट कर दिया जायेगा।

अस्वीकरण ( Disclaimer )
गोण्डा न्यूज लाइव एक हिंदी समुदाय है जहाँ आप ऑनलाइन समाचार, विभिन्न लेख, इतिहास, भूगोल, गणित, विज्ञान, हिन्दी साहित्य, सामान्य ज्ञान, ज्ञान विज्ञानं, अविष्कार , धर्म, फिटनेस, नारी ब्यूटी , नारी सेहत ,स्वास्थ्य ,शिक्षा ,18 + ,कृषि ,व्यापार, ब्लॉगटिप्स, सोशल टिप्स, योग, आयुर्वेद, अमर बलिदानी , फूड रेसिपी , वाद्ययंत्र-संगीत आदि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी केवल पाठकगणो की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दिया गया है। ऐसे में हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप किसी भी सलाह,उपाय , उपयोग , को आजमाने से पहले एक बार अपने विषय विशेषज्ञ से अवश्य सम्पर्क करे। विभिन्न विषयो से सम्बन्धित ब्लाग/वेबसाइट का एक मात्र उद्देश आपको आपके स्वास्थ्य सहित विभिन्न विषयो के प्रति जागरूक करना और विभिन्न विषयो से जुडी जानकारी उपलब्ध कराना है। आपके विषय विशेषज्ञ को आपके सेहत व् ज्ञान के बारे में बेहतर जानकारी होती है और उनके सलाह का कोई अन्य विकल्प नही। गोण्डा लाइव न्यूज़ किसी भी त्रुटि, चूक या मिथ्या निरूपण के लिए जिम्मेदार नहीं है। आपके द्वारा इस साइट का उपयोग यह दर्शाता है कि आप उपयोग की शर्तों से बंधे होने के लिए सहमत हैं।

”go"